________________ लेकिन असल में होता क्या है जिस संसार में हम रहते है, वह हमारे ही द्वारा बनाया गया संसार है। जिस शरीर में हम रहते हैं, हमारा ही निर्माण है। जिस मन में हम रहते हैं, वह भी हमारी अपनी ही रचना है। हम अपनी धारणाओं के दवारा ही सारे संसार का निर्माण करते हैं। जो कुछ भी हम सोचते हैं, देर - अबेर वह वास्तविकता बन ही जाती है! प्रत्येक विचार अंतत: सत्य ही हो जाता है। और ऐसा हर एक साधारण मन के साथ होता है, जो हर क्षण विषय को बदलता रहता है, जो यहां से वहां भागता रहता है। फिर संयम की तो बात ही कहां उठती है? जब मन नहीं रह जाता है, मन बिदा हो जाता है और केवल मैत्री भाव ही रह जाता है, तो व्यक्ति मैत्री की अवधारणा के साथ इतना एक हो जाता है कि वह स्वयं भी मैत्री ही हो जाता है। बुद्ध ने कहा था, ' अब जब मैं संसार में दुबारा आऊंगा तो मेरा नाम मैत्रेय होगा, मेरा नाम मित्र होगा।' बुद्ध की यह बात हत ही प्रतीकात्मक है। चाहे बुद्ध इस संसार में आएं या न आएं, सवाल इसका नहीं है। लेकिन यह बात बड़ी प्रतीकात्मक है। बुद्ध कह रहे हैं कि सबुद्ध होने के बाद मित्र होना ही होता है। जब कोई व्यक्ति समाधि को उपलब्ध हो जाता है, तो वह करुणावान भी हो जाता है। करुणा की कसौटी पर ही हम परख सकते हैं कि समाधि सत्य है या नहीं। स्मरण रहे, कंजूस मत होना, क्योंकि हमारी आदतें वही पुरानी रहती हैं। अगर बाहर के संसार में व्यक्ति कंजूस है और वस्तुओं को पकड़े रखना चाहता है - धन को, संपत्ति को या किन्हीं भी वस्तुओं को पकड़े रखना चाहता है -तो जब समाधि उपलब्ध होगी, तो वह समाधि को भी पकड़े रहना चाहेगा। पकड़ जारी रहेगा- और पकड़ को ही गिराना है। इसीलिए अमृत को उपलब्ध होने के पश्चात, जब कि व्यक्ति मृत्यु से मुक्त हो जाता है, पतंजलि कहते हैं, मैत्री का आविर्भाव होने दो, अब अपनी समाधि में दूसरों को भी सहभागी बनाओ, उसे बांटो। पैलेस्टाइन में दो समुद्र हैं। एक समुद्र में तो है ताजा और चमकता हुआ पानी। उस समुद्र के आसपास पेड़ -पौधे हैं, विभिन्न प्रकार के फल –फूल उगते हैं। उसमें मछलियां रहती हैं, और उसके किनारे –किनारे हरियाली छायी हुई है। इस समुद्र का पानी इतना शुद्ध और ताजा है कि उस पानी से बीमारिया ठीक हो जाती हैं, वह माउंट हर्मन की पहाड़ियों से होता हुआ जोर्डन नदी के माध्यम से वहां तक पहुंचता है जीसस को यह नदी बहुत प्रिय थी। और चूंकि यह नदी इस समुद्र में गिरती है, इसलिए जीसस को यह समुद्र भी बहुत प्रिय था। उनके साथ इसी जगह के आसपास बहुत से चमत्कार भी घटित हुए। ........उस सदगुरु को इस सागर से प्रेम था, और उनके सत्संग की कई आनंद की घड़ियां इसी समुद्र के आसपास व्यतीत हई थीं। अभी भी वह स्थान शांत व ऊर्जा से भरा हआ है।