________________
वह दार्शनिक बहुत देर तक उस गेहूं के दाने की तरफ देखता रहा, और उस दाने की तरफ देखते - देखते जब वह ध्यान में डूब गया तो महल में चारों ओर एक गहन मौन छा गया। कुछ समय बाद वह बोला, 'मैंने यहां आने के लिए जो इतनी लंबी यात्रा की उसके लिए मुझे कोई पश्चाताप नहीं है, क्योंकि अभी तक तो मैं विश्वास ही करता था, लेकिन अब मैं जानता है कि जरथस्त्र सच में ही एक महान सदगुरु हैं। गेहूं का यह छोटा सा दाना हमें सचमुच सृष्टि के नियमों और प्रकृति की शक्तियों के विषय में सिखा सकता है, क्योंकि गेहूं का यह छोटा सा दाना अभी और यहीं अपने में सृष्टि के नियम और प्रकृति की शक्ति को अपने में समाए हुए है। आप गेहूं के इस दाने को सोने के डिब्बे में सुरक्षित रखकर पूरी बात को चूक रहे हैं।
'अगर आप इस छोटे से गेहूं के दाने को जमीन में बो दें, जहां से यह दाना संबंधित है, तो मिट्टी का संसर्ग पाकर, वर्षा -हवा – धूप, और चांद-सितारों की रोशनी पाकर, यह और अधिक विकसित हो जाएगा। जैसे कि व्यक्ति की समझ और ज्ञान का विकास होता है, तो वह अपने अप्राकृतिक जीवन को छोड़कर प्रकृति और सृष्टि के निकट आ जाता है, जिससे कि वह संपूर्ण ब्रह्मांड के अधिक निकट हो सके। जैसे अनंत-अनंत ऊर्जा के स्रोत धरती में बोए हुए गेहूं के दाने की ओर उमड़ते हैं, ठीक वैसे ही ज्ञान के अनंत - अनंत स्रोत व्यक्ति की ओर खुल जाते हैं, और तब तक उसकी तरफ बहते रहते हैं जब तक कि व्यक्ति प्रकृति और संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ एक न हो जाए। अगर गेहूं के इस दाने को ध्यानपूर्वक देखो, तो तुम पाओगे कि इसमें एक और रहस्य छुपा हुआ है – और वह रहस्य है जीवन की शक्ति का। गेहूं का दाना मिटता है, और उस मिटने में ही वह मृत्यु को जीत लेता है।'
राजा ने कहा, 'आप जो कहते हैं वह सच है। फिर भी अंत में तो पौधा कुम्हलाएगा और मर जाएगा और पृथ्वी में विलीन हो जाएगा।'
उस दार्शनिक ने कहा, 'लेकिन तब तक नहीं मरता, जब तक यह सृष्टि की प्रक्रिया को पूरी नहीं कर लेता और स्वयं को हजारों गेहूं के दानों में परिवर्तित नहीं कर लेता। जैसे छोटा सा गेहूं का दाना मिटता है तो पौधे के रूप में विकसित हो जाता है, ठीक वैसे ही जब तुम भी जैसे-जैसे विकसित होने लगते हो तुम्हारे रूप भी बदलने लगते हैं। जीवन से और नए जीवन निर्मित होते हैं, एक सत्य से और सत्य जन्मते हैं, एक बीज से और बीजों का जन्म होता है। केवल जरूरत है तो एक ही कला सीखने की और वह है मरने की कला। उसके बाद ही पुनर्जन्म होता है। मेरी सलाह है कि हम जरथुस्त्र के पास चलें, ताकि वे हमें इस बारे में कुछ अधिक बताएं।'
कुछ ही दिनों के पश्चात वे जरथुस्त्र के बगीचे में आए। प्रकृति की पुस्तक ही उसकी एकमात्र पुस्तक थी, और उसने अपने शिष्यों को उस प्रकृति की पुस्तक को ही पढ़ने की शिक्षा दी। इन दोनों ने जरथुस्त्र के बगीचे में एक और बड़े सत्य की शिक्षा पाई कि जीवन और कार्य, अवकाश और अध्ययन, एक ही चीज हैं; जीने का सही ढंग सरल और स्वाभाविक जीवन जीना है। जीवन सृजनात्मक होना चाहिए, उसी में व्यक्ति का विकास समग्रता से और सक्रियता से होता है।