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तुम्हारा जो जीवन है, वह उधार का जीवन है। इसीलिए तुम उदास और दुखी रहते हो। इसीलिए तुम में जीवन जैसा कुछ दिखाई नहीं पड़ता है, तुम जीवन को ढोते हुए मालूम पड़ते हो, जहां कहीं कोई आनंद -उत्साह की तरंग नहीं है। इसीलिए तुम्हारे जीवन में कोई आनंद, कोई उत्सव नहीं है। उधार विचारों के नीचे सब कुछ दब गया है। तुम्हारा पूरा का पूरा अंतप्रवाह अवरुद्ध हो गया है। उधार विचारों के कारण जीवन की जीवंत धारा के साथ बह सकना संभव नहीं हो पाता है। लेकिन जब तुम समाधि के, ऐटरेक्सिआ के हिस्से हो जाते हो, तो भीतर गहन शांति और विराम छा जाता है, तब पहली बार सोचने -विचारने की क्षमता का जन्म हो पाता है –लेकिन अब जो विचार हैं वे तुम्हारे अपने हैं। अब जो जीवन होगा वह मौलिक और यथार्थ होगा। जो जीवंत होगा, जिसमें सुबह की भांति ताजगी होगी, उसमें सुबह की ठंडी हवा जैसी शीतलता और ताजगी होगी। और तब तुम जो भी करोगे उसमें सृजनात्मकता होगी।
'समाधि' में तुम सर्जक हो जाते हो, या कहो कि जो कुछ भी तुम करते हो उसमें सृजन ही होता है, क्योंकि समाधि में तुम परमात्मा के अंश हो जाते हो।
पास्कल का एक वचन है कि मनुष्य की बहुत सी मुसीबतों का कारण है कि वह चुपचाप शांति से अपने कमरे में नहीं बैठ सकता है।
और पास्कल के इस वचन में सचाई है। अगर व्यक्ति अपने में शांत होकर बैठ सके तो लगभग सभी मुसीबतें और सभी परेशानियां समाप्त हो जाएंगी। चित्त का भटकाव ही परेशानियों और मुसीबतों के जन्म का कारण है। और उन विचारों के साथ अनावश्यक रूप से जड़ जाने से जो कि स्वयं के नहीं हैं, व्यक्ति स्वयं के लिए मसीबतें और परेशानियां खड़ी कर लेता है। और विचारों को व्यक्ति इसलिए निर्मित करता है, क्योंकि वह शांत नहीं बैठ सकता है।
'समाधि परिणाम वह आंतरिक रूपांतरण है, जहां चित को तोड़ने वाली अशांत वृत्तियों का क्रमिक ठहराव आ जाता है और साथ ही साथ एकाग्रता उदित होती है।'
पहले पतंजलि ने 'निरोध परिणाम' की बात कही, जिसमें दो विचारों के बीच के अंतराल को देखना है। अगर तुम विचारों को देखते ही जाओ, देखते ही चले जाओ, तो धीरे - धीरे विचारों में ठहराव आने लगता है, वे शांत होने लगते हैं।
जैसे किसी पहाडी नदी में से कोई बैलगाड़ी गुजरी हो तो उन बैलगाड़ी के पहियों के निकलने के कारण, जो नदी अभी तक एकदम स्वच्छ और शांत बह रही थी, उसका पानी गंदा और अस्वच्छ हो जाएगा। वही नदी जिसका जल अभी कुछ क्षण पहले एकदम स्वच्छ और साफ था अब गंदा हो गया, उसमें गंदगी घुल गयी। लेकिन फिर बैलगाड़ी वहां से जा चुकी, और नदी फिर पहले की तरह बहती ही चली जा रही है, तो धीरे - धीरे जैसे -जैसे समय निकलता है, गंदगी और धूल फिर से नीचे बैठ जाती है, नदी फिर से साफ-स्वच्छ हो जाती है।