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तो अनंत रूप और आकार हैं, और अनंत रूपों और आकारों में निरंतर उसके सृजन की प्रक्रिया चल रही है।
अगर मार्ग पर कभी तुम्हारा परमात्मा से मिलना हो जाए, और मार्ग पर तुम उसे पहचान सको, केवल तभी यह संभावना है कि तुम शिखर पर जाने का विचार छोड़ दो. शायद तुम बीच में से ही वापस लौट आओ। जो लोग भी संसार को त्यागकर साधना के लिए जंगल में गए थे, बुद्धत्व प्राप्ति के बाद वे वापस संसार में ही लौट आए। वे अपने बुद्धत्व की सुवास के साथ वापस संसार में ही लौट आए। उन्हें संसार में वापस आना ही पड़ा। जब उन्होंने जीवन के सार को पहचान लिया; उन्होंने जीवन की पूर्णता को, पवित्रता को पहचान लिया, तो उन्हें वापस संसार में लौट ही आना पड़ा। तब उन्होंने जाना कि बाह्य और अंतर अलग नहीं हैं, सृजनात्मकता एवं सृजन अलग नहीं हैं, पदार्थ और मन अलग नहीं हैं, लौकिक और अलौकिक अलग नहीं हैं –वे एक ही हैं। उनके लिए सभी द्वैत समाप्त हो गए। इसी दुई के मिट जाने को ही मैं अद्वैत कहता हूं –यही वेदांत का और योग का वास्तविक संदेश है।
संसार से थक जाना स्वाभाविक है। मुक्ति की खोज करना एकदम स्वाभाविक है, इसमें कुछ विशिष्टता नहीं है।
एक बार ऐसा हुआ:
मुल्ला नसरुद्दीन अपने विवाह की पच्चीसवीं वर्षगांठ मना रहा था उसने अपने सभी दोस्तों के लिए एक बड़ी पार्टी का आयोजन किया। उस पार्टी में उसने मुझे भी बुलाया। लेकिन पार्टी में मेजबान तो कहीं दिखायी ही नहीं दे रहा था। चारों ओर मैंने बहुत खोजा, आखिर में मैंने मुल्ला को लाइब्रेरी में ब्रांडी पीते हुए देखा और मुल्ला था कि आग की ओर देखे जा रहा था।
मैंने मुल्ला से कहा, 'मुल्ला, तुम्हें तो अपने मेहमानों के साथ उत्सव मनाना चाहिए। तुम उदास क्यों हो? और तुम यहां क्या कर रहे हो?'
मुल्ला बोला, 'बताऊं मैं उदास क्यों हूं? जब मेरे विवाह के पाच वर्ष हुए थे, तो मैंने सोचा अपनी पत्नी की हत्या कर दूं। मैंने अपने वकील को जाकर बताया कि मैं क्या करने जा रहा हूं। वकील ने कहा कि अगर मुल्ला तुमने ऐसा किया तो बीस साल के लिए जेल जाना पड़ेगा।' मुल्ला मुझसे कहने लगा, 'जरा सोचिए, कम से कम आज तो मैं स्वतंत्र हो गया होता।'
ऐसा स्वाभाविक है। यह संसार बहुत ही कष्ट और' पीड़ाओं से भरा हुआ है। यहां सिर्फ चिंता और परेशानी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। संसार व्यक्ति के लिए सिर्फ कारागृह खड़े करता है, इसलिए मक्ति की, स्वतंत्रता की खोज करना स्वाभाविक है-इसमें कोई विशेष बात नहीं है। विशिष्टता तो तब है, जब तुम शिखर से घाटी में पैरों में एक नए ही नृत्य की थिरकन लेकर वापस लौटते हो, तुम्हारे होंठों पर नया गान होता है, तुम्हारा पूरा अस्तित्व ही बदल गया होता है, तुम्हारा पूरा रूप ही नया