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सकते। फिर चाहे भोजन करना हो, या चाय पीना हो, इतना अधिक आनंदपूर्ण होता है कि तुम सोच भी नहीं सकते, कल्पना भी नहीं कर सकते कि इससे अधिक आनंददायी भी कुछ हो सकता है। तब जीवन का हर क्षण, हर पल अपने आप में अमूल्य हो जाता है, और तब जीवन का प्रत्येक अनुभव फूल की भांति खिल उठता है –लेकिन तब इन सब अनुभवों के प्रति भी तुम जागरूक और सजग बने रहते हो। तुम उन अनुभवों में खो नहीं जाते हो, उन अनुभवों के साथ तादात्म्य नहीं बना लेते हो।
बोधिसत्व, मैं समझ सकता हूं। तुम एक कठिन कार्य कर रहे हो। तुम काम भी कर रहे हो, ध्यान भी कर रहे हो। तुम वह सभी कुछ कर रहे हो, जो एक व्यक्ति कर सकता है। इससे अधिक तुम कुछ कर भी नहीं सकते हो।
सच तो यह है कि अगर तुम कुछ और अधिक करोगे तो उससे मदद मिलने वाली नहीं है। अब तुम उस जगह पहुंच गए हो, जहां अब साक्षी हो जाना है। अनुभवों को गुजरने दो -उन्हें आने दो, जाने दो, उनके द्वारा विचलित और परेशान मत होना। और न ही उनसे आकर्षित होओ। बस, जागरूक और तटस्थ होकर-मन में चलते हुए यातायात को देखते रहो, मन के आकाश में गुजरते हुए बादलों को देखते रहो। बस, द्रष्टा हो जाओ और अचानक तुम पाओगे कि फिर किसी पक्षी का बोलना, या किसी छोटे से फूल का खिल जाना-ऐसी .छोटी -छोटी बातें गहन परितृप्ति दे जाती हैं। और संतोष से भर जाती हैं।
बासो का एक हाइकू है। जापान में एक बहुत ही छोटा फूल होता है, जिसे नाना कहकर पुकारते हैं। वह फूल एकदम छोटा सा, सामान्य, साधारण, और इतना दरिद्र होता है कि कोई उस फूल के
ता है कि कोई उस फूल की तरफ देखता भी नहीं है, और न ही उसके बारे में कोई बात करता है। कवि गुलाब की चर्चा करते हैं। बेचारे नाजुना की बात कौन करता है? नाजुना एक जंगली फूल है। और बहुत सी भाषाओं में तो इस फूल के लिए कोई नाम तक नहीं है, क्योंकि कौन उस बेचारे फूल के नाम की परवाह करता है? लोग उस फूल के पास से बिना देखे ही निकल जाते हैं, उसकी ओर देखते तक नहीं हैं।
जिस दिन बासो को पहली सतोरी की झलक मिली और वह अपनी कुटिया से बाहर निकले तो उनकी नजर सबसे पहले नाजुना पर पड़ी। और बासो ने अपने हाइकू में कहा है, 'मैंने पहली बार नाजुना के सौंदर्य को देखा और जाना। वह नाजुना का फूल अनूठा और अपूर्व था। सभी स्वर्गों को नाजुना फूल के सामने एकसाथ मिला दिया जाए, तो भी कुछ नहीं है।'
बासो के लिए नाजुना कैसे इतना सौंदर्यपूर्ण हो गया? और बासो कहते हैं, 'नाजुना में वह सौंदर्य तो सदा से मौजूद था, और मैं न जाने कितनी बार उसके पास से गुजरा था, लेकिन इससे पहले मैंने ऐसा सौंदर्य कभी नहीं देखा था।' क्योंकि बासों स्वयं वहां पर मौजूद न था।