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अनुभव आदमी को रूपांतरित कर देता है, लेकिन रूपांतरित होने के लिए अनुभव में होश और बोध होना चाहिए। लेकिन अगर अनुभव अमूर्छा में हो, बेहोशी में हो, तो रूपांतरण संभव नहीं है। हमने वैसा ही जीवन पहले जीया है जैसा कि हम अभी जी रहे है-कई-कई बार, कई-कई जन्मों में हमने ऐसा ही जीवन जीया है –लेकिन हम उसे भूल-भूल जाते हैं। और हम फिर से उसी लीक पर चलना शुरू कर देते हैं, और यह समझकर जैसे कि फिर से नए जन्म का प्रारंभ हो रहा है, हम फिर-फिर उसी तरह जीने लगते हैं और फिर से वही निराशा और हताशा ही हाथ लगती है। और इस तरह से हम पुन: -पुन: उन्हीं पुराने मार्गों पर चलते रहते हैं।
हो सकता है हमारा शरीर नया हो, लेकिन मन नया नहीं होता है, मन तो वही पुराना का पुराना होता है। शरीर तो नई बोतल की भांति होता है, और उसमें मन वही पुरानी शराब की भांति होता है। बोतलें बदलती चली जाती हैं और शराब वही की वही रहती है।
पतंजलि कहते हैं, अगर तुम एकाग्र हो जाओ -और यह संभव है, क्योंकि इसमें कोई रहस्य छिपा हुआ नहीं है। केवल थोड़ा सा प्रयास, संकल्प, दृढ़ता, और धैर्य की आवश्यकता है -तब जिन रूपों, आकारों में पहले रह चुके हो, वह सभी रूप और आकारों को देखने में तुम सक्षम हो जाओगे। और उसकी एक झलक भर, और पुराना ढर्रा –ढांचा सब ढह जाएगा। और इसमें जरा भी चमत्कार नहीं है। यह तो प्रकृति के नियम के अनुकूल सीधी –सरल बात है।
समस्या का मूल कारण है कि हम बेहोश हैं, मूर्छित हैं। समस्या इसलिए पैदा होती है, क्योंकि हम बार -बार मरते हैं और बार -बार जन्म लेते रहते हैं, लेकिन हर बार किसी न किसी तरह मूर्छा का पर्दा, बेहोशी का पर्दा बीच में आ जाता है और हमारा अपना अतीत ही हमसे छिप जाता है। हम बर्फ की उस चट्टान की भांति हैं -बर्फ की चट्टान का एक छोटा सा हिस्सा ही सतह पर होता है और बड़ा हिस्सा तो सतह के नीचे होता है - अभी तो हमारा व्यक्तित्व बिलकुल उस बर्फ की चट्टान के छोटे से हिस्से की भांति है, जो सतह से थोड़ा सा बाहर निकला हुआ है। हमारा पूरा अतीत तो सतह के नीचे छिपा हुआ है। जब व्यक्ति उस अतीत के प्रति जागरूक हो जाता है, तो फिर किसी और चीज की आवश्यकता नहीं रहती है। तब तो वह जागरूकता ही क्रांति बन जाती है।
रंगरूटों की एक टोली की परीक्षा लेने के लिए नौसेना के सार्जेंट ने उनमें से एक रंगरूट से पूछा, 'जोन्स, जब तुम राइफल साफ करते हो तो सब से पहले तुम क्या करते हो?'
'नंबर देखता हूं, 'तत्काल जोन्स ने उत्तर दिया।
'भला राइफल साफ करने से इसका क्या संबंध है?' सार्जेंट ने पूछा।
जोन्स ने उत्तर दिया, 'मैं यह पक्का कर लेना चाहता हूं कि मैं अपनी ही राइफल साफ कर रहा हूं न!'