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में ही वहां से भाग खड़े होते थे। केवल कुछ थोड़े से ऐसे विरले लोग, जिन्होंने सच में ही समर्पण किया हो वहां टिक पाते थे।
उदाहण के लिए, एक बार एक बहुत ही कुशल संगीतज्ञ गुर्जिएफ के पास आया। वह संगीतज्ञ अपनी कला के लिए बहुत विख्यात था। गुर्जिएफ ने उस संगीतज्ञ से कहा, अपना संगीत बंद करो और जाकर बगीचे में गट्टे खोदो। अरि प्रतिदिन बारह घंटे उसे बगीचे में गड्डे खोदने हैं। उस संगीतज्ञ ने ऐसा कठोर श्रम पहले तो कभी किया नहीं था। उसने हमेशा संगीत को ही बजाया था साज ही बिठाया था। चूंकि वह संगीतज्ञ था, उसने हमेशा संगीत ही बजाया था, तो उसके हाथ भी बहुत और हु कोमल थे, उसके हाथ कोई मजदूर के या किसी श्रमिक के कठोर हाथ तो थे नहीं उसके हाथ अत्यंत सुकोमल स्त्रैण हाथ थे, और वे हाथ केवल एक ही कार्य जानते थे वे हाथ केवल संगीत बजा सकते थे। जीवनभर तो उसने संगीत बजाया है, और अब यह आदमी कहता है दूसरे दिन से ही उस संगीतज्ञ ने बगाचे में जाकर गड्डे खोदने शुरू कर दिए।
इस तरह दिन भर वह गड्डा खोदता अरि शाम को गुर्जिएफ आता और उससे कहता, 'अच्छा, बहुत अच्छा। अब मिट्टी को वापस गड़ाएं में डाल दो। गड्डों को वापस मिट्टी से भर दो। और जब तक तुम गड्डों को वापस मिट्टी से भर न दो, तब तक सोना मत।' और वह फिर से चार - पांच घंटे तक लगातार गड्डे भरता रहता था और ठीक वैसे ही मिट्टी भरनी होती थी, जैसे वे पहले थे क्योंकि गर्जिएफ सुबह आकर देखेगा। सुबह गुर्जिएफ आता और कहता, 'ठीक है । अब दूसरे गड्डे खोदो ।' और ऐसा कोई तीन महीने तक चला।
ऐसे देखो तो गड्डे खोदना व्यर्थ का काम है, लेकिन सवाल यह है कि अगर तुमने समर्पण कर दिया है, तो कर ही दिया है फिर तुम्हें इस बात की फिकर लेने की जरूरत नहीं है कि गुर्जिएफ तुमसे क्या करवा रहा है। तुमको तो अपने मन की, अपने तर्क को अपने विवाद को समर्पित कर देना है।
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तीन महीने में उस संगीतज्ञ का रूप ही बदल गया, वह आदमी ही कुछ और हो गया। तब गुर्जिएफ ने उस संगीतज्ञ से कहा, अब तुम संगीत बजा सकते हो। अब तुम्हारे भीतर एक नए संगीत ने जन्म ले लिया है, जो पहले वहां नहीं था। अब तुमने अज्ञात को जान लिया है, अब तुमने अज्ञात के संगीत को सुन लिया खै उस संगीतज्ञ ने गुर्जिएफ से शिष्यत्व ग्रहण किया, उसने गुर्जिएफ पर श्रद्धा की, और जैसा गुर्जिएफ ने उससे कहा वैसा उसने किया।
जो लोग धोखा देने की कोशिश करेंगे, ऐसे लोग गुर्जिएफ के पास न टिक सकेंगे, वे तुरंत भाग निकलेंगे। कृष्णमूर्ति के साथ ऐसे लोग रह सकते हैं क्योंकि कृष्णमूर्ति के साथ करने को तो कुछ है नहीं, न ही ध्यान करने को कुछ है... और कृष्णमूर्ति ठीक कहते हैं। लेकिन वे केवल एक प्रतिशत लोगों के लिए ही ठीक हैं और यही है समस्या क्योंकि तब वे एक प्रतिशत लोग कभी कृष्णमूर्ति को सुनने न जाएंगे। वे स्व प्रतिशत लोग अपने से ही चलते हैं। अगर ऐसा आदमी कभी संयोगवशांत