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अब यह जो नहीं है, वह वहा की सरकार के द्वारा प्रचारित है। रूस में हर एक स्कूल में, कालेज में और यूनिवर्सिटी में, नहीं की ही पूजा हो रही है। अब नास्तिकता ही रूस का धर्म बन गई है, और हर एक व्यक्ति को नास्तिकता की शिक्षा दी जा रही है।
तो रूस में यह नहीं कृत्रिम गर्भ की तरह होगा। उनकी नहीं भी दूसरों के द्वारा नापी –तौली हुई होगी। जैसे कि कोई व्यक्ति ईसाई घर में या हिंदू घर में या मुसलमान घर में पैदा हो जाए और फिर उसे उसी धर्म के अनुसार शिक्षा दी जाए जिसमें कि वह पैदा हुआ है, तो धीरे – धीरे वह उसी में विश्वास करने लगता है।
एक छोटा बच्चा अगर अपने पिता को प्रार्थना करते हए देखता है तो वह भी प्रार्थना करने लगता है, क्योंकि बच्चे हमेशा अपने बड़ों का अनुकरण करते हैं। अगर पिता चर्च में जाता है, तो बच्चा चर्च चला जाता है। जब वह यह देखता है कि यहां पर तो हर कोई किसी न किसी बात में विश्वास कर रहा है, तो वह भी विश्वास का दिखावा करने लगता है।
अब इसी से कृत्रिम गर्भ का जन्म होता है। अब पेट तो बढ़ता चला जाएगा, लेकिन उसमें से किसी बच्चे का जन्म नहीं होगा, उसमें से किसी जीवन का जन्म न होगा। केवल बढे हए पेट के कारण व्यक्ति जरूर कुरूप हो जाएगा।
झूठी 'हाँ' भी हो सकती है, झूठी 'नहीं' भी हो सकती है, तब फिर उसमें से कुछ भी बाहर नहीं आएगा। वृक्ष की पहचान उसके फल से होती है, और कार्य का पता उसके परिणाम से ही चलता है। हम प्रामाणिक हैं या नहीं, इसका पता हमारे पुनर्जन्म से ही चलता है। यह तो हुई एक बात।
दूसरी बात ध्यान में रखने की यह है कि शायद तुम सच में ही गर्भ धारण किए हो, लेकिन अगर मां बच्चे को जन्म देने से ही मना कर दे, तो वह बच्चे को ही मार डालेगी। गर्भ में अगर बच्चा हो, तो भी उस बच्चे को जन्म देने के लिए मां को सहयोग तो करना ही पड़ता है। जब नौ महीने के विकास के बाद बच्चा गर्भ से बाहर आना चाहता है, तो मां को भी सहयोग करना पड़ता है। क्योंकि बच्चे को जन्म देने में मा सहयोग नहीं देती है, इसीलिए उसे इतनी अधिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। बच्चे का जन्म इतनी स्वाभाविक, और प्राकृतिक घटना है कि मां को कोई पीड़ा होनी ही नहीं चाहिए।
और जो लोग जानते हैं, उनका कहना है कि अगर मां बच्चे को जन्म देने में सहयोग करे तो बच्चे के जन्म की घटना स्त्री के जीवन के सर्वाधिक आनंदमयी घटनाओं में से एक है। उस स्त्री के लिए उस जैसी आनंद की कोई और बात नहीं है। स्त्री के लिए कोई भी संभोग का अनभव इतना गहरा और आनंद का अनुभव नहीं होता है जितना कि जब एक स्त्री बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में सहभागी हो रही होती है। एक नए जीवन को जन्म देने में, एक नए अस्तित्व के जन्म के साथ स्त्री का रोयी रोयी तरंगायित और आंदोलित हो जाता है। बच्चे को जन्म देने में वह परमात्मा का माध्यम बन जाती है। तब वह स्रष्टा बन जाती है। उसके शरीर का रो-रोआं, उसके शरीर का पोर-पोर एक