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खोज के लिए किसी की मदद और सहयोग चाहिए रहता है। कोई किसी से ऊंचा नहीं है और कोई किसी से नीचा नहीं है, हर व्यक्ति का अपना-अपना ढंग है।
जो व्यक्ति अकेले नहीं पा सकता है, उस व्यक्ति के लिए 'समर्पण मार्ग होगा, प्रेम उसका मार्ग होगा, भक्ति उसका मार्ग होगा, श्रद्धा उसका मार्ग होगा। ऐसा मत सोचना कि श्रद्धा आसान है। श्रद्धा उतनी ही कठिन है जितना कि अकेले अपने से बढ़ना। कई बार तो श्रद्धा उससे भी अधिक कठिन होती है। और कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अकेले ही यात्रा पर जाएंगे, अकेले ही खोज पर जाएंगे।
अभी कुछ दिन पहले एक युवक मेरे पास आया, और उसने मझ से पूछा, 'क्या मैं स्वयं अकेले ही खोज नहीं कर सकता हूं? क्या मुझे आपका शिष्य होना पड़ेगा? क्या मुझे संन्यासी होना होगा? क्या मैं अपने से सत्य की खोज पर नहीं जा सकता? क्या मैं स्वयं ही मार्ग नहीं खोज सकता?' मैंने उससे कहा, 'तो फिर तुम मुझसे यह पूछने भी क्यों आए गुम तुम उस ढंग के नहीं हो जो अपने से मार्ग पर बढ़ सके। इतनी सी बात का निर्णय भी तुम नहीं करू सकते, तुम मुझसे पूछते हो! तो फिर क्या खाक किसी बात का निर्णय तुम अपने से कर पाओगे? यह भी तुम मुझसे पूछने आ गए। इस बात का निर्णय भी मुझे करना है -तो तुम शिष्य हो ही!' लेकिन वह बहस करने लगा, वह बोला, 'लेकिन आप तो कभी किसी गुरु के शिष्य नहीं रहे।' मैंने कहा, 'यह ठीक है, लेकिन मैं कभी किसी से पूछने भी नहीं गया। इस के लिए मैं कभी किसी के पास पछने नहीं गया।'
और मेरी समझ यह है. कि जो लोग अकेले ही स्वयं की खोज के लिए जाते हैं उनमें विरले ही ऐसे होते हैं जो उपलब्ध होते हैं –क्योंकि बहुत बार अहंकार कहेगा कि तुम विरले व्यक्ति हो, कि तुम अपने आप अकेले ही बढ़ सकते हो, किसी का अनुसरण करने की कोई जरूरत नहीं है; और इस तरह से तुम्हारा अहंकार ही तुम्हें धोखा देगा, तुम अपने ही अहंकार के द्वारा धोखा खा जाओगे।
तुम किसी का अनुसरण न करो, तुम अपने ही अहंकार, अपनी ही कल्पना का अनुगमन करो-और यह बात तुम्हें न जाने कितनी खाइयों और खड्डों में ले जाएगी। और सच तो यह है, अहंकार की आड़ में तुम स्वयं का ही अनुगमन कर रहे होते
होते हो, तुम आगे नहीं बढ़ रहे होते हो, तुम स्वयं के ही पीछे - पीछे चल रहे होते हो। और जबकि तुम अभी स्वयं ही उलझे हुए और अस्त -व्यस्त हो। ऐसी उलझन से भरी भ्रांत अवस्था में तुम कहां जाओगे? कैसे जाओगे?
इस बात को ठीक से और स्पष्ट रूप से समझ लेना। हमेशा अपने अंतस की आवाज सुनना। कहीं यह तुम्हारा अहंकार तो नहीं जो कह रहा हो कि किसी के अनुयायी मत बनो? अगर यह अहंकार कह रहा है, तो फिर तुम कहीं के न रहोगे। फिर तो तुम अहंकार के घेरे में ही उलझ जाओगे और उसी घेरे में चक्कर लगाते रहोगे। फिर तो किसी का अनुसरण करना ही अच्छा है। फिर तो किसी ऐसे समूह को जो एक ही यात्रा -पथ के सहभागी हों, या किसी सदगुरु को खोज लेना। इस अहंकार को गिर