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म तो बिलकुल अभी तैयार हूं तुम्हारी मदद करने के लिए। उतनी देर भी प्रतीक्षा क्यों करनी? उस
बात को स्थगित क्यों करना?
और जब मैं जीवित हूं, शरीर में मौजूद हूं, अगर तब तुम मुझे चूक जाते हो तो जब मैं नहीं रहूंगा तब तुम कैसे मुझ तक पहुंच सकोगे? जब मैं यह। मौजूद हूं, तब अगर तुम मेरे साथ मेरी धारा में प्रवाहित नहीं हो सकते हो, तो जब मैं नहीं रहूंगा तब तो यह बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। इसलिए स्थगित क्यों करना त्र:
तुम्हारे भीतर प्यास मौजूद है और मैं तुम्हारी प्यास बुझाने के लिए इसी पल इसी क्षण तैयार हूं, तो फिर भविष्य की बात क्यों सोचनी? तुम इतने भयभीत क्यों हो? और अगर तुम आज इतने भयभीत हो, तो कल तो और भी ज्यादा भयभीत हो जाओगे। क्योंकि आज का भय भी उसमें समाहित हो जाएगा। रोज-रोज तुम्हारा भय बढ़ता चला जाएगा।
मृत्यु के भय को गिर जाने दो। मृत्यु की तैयारी ही पुनर्जीवन की तैयारी है।
मुझे एक बहुत ही प्यारी कथा याद आती है। उसे मैं तुम से भी कहना चाहूंगा :
तीन कछुए थे। उनमें से एक दो सौ एक वर्ष का था, दूसरा एक सौ पैंतीस वर्ष का था, और तीसरा सत्तानबे वर्ष का था। उन तीनों ने लंदन में शराबघरों की सैर करने का निर्णय लिया।
पहले तो वे गए 'स्टार एंड गार्टर' में। पंद्रह दिन के बाद वे पहुंचे एक दूसरे शराबघर में। जैसे ही वे भीतर जा रहे थे, तो उनमें से जिसकी आय सबसे अधिक थी, बोला, 'ओह, अब क्या होगा। मैं तो अपना पर्स दूसरे शराबघर में ही छोड़ आया है।'
उन तीनों में जो सबसे छोटा था वह कहने लगा, 'तुम बहुत के हो, इतनी दूर कैसे वापस जाओगे। मैं तुम्हारा पर्स ला देता हूं।' और ऐसा कहकर वह पर्स लेने चला गया। दस दिन के बाद जब वे दोनों वृद्ध कछुए बार-रेलिंग के पास पहुंचे तो उन में से एक बोला, 'युवा ऑर्नाल्ड तो तुम्हारा पर्स लाने में बहुत देर लगा रहा है।'
तो दूसरा कहने लगा, 'वह तो ऐसा ही है। उसके ऊपर बिलकुल भरोसा नहीं किया जा सकता है। और वह बहुत ही सुस्त है।'
अचानक द्वार की ओर से एक आवाज सुनाई पड़ी, 'धिक्कार है तुम दोनों को! इसीलिए तो मैंने सोचा कि मैं जाऊंगा ही नहीं।'