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लिए संस्कारित हो गया है। कोई ईसाई है, वह ईसाइयत में विश्वास करता है, क्योंकि उसका मन ईसाई होने के लिए संस्कारित हो गया है। कोई कम्युनिस्ट है, वह कम्युनिस्ट होने में ही विश्वास किए चला जाता है क्योंकि उसका मन कम्युनिस्ट होने के लिए ही आबद्ध हो गया है। ये तीनों एक जैसे ही लोग हैं, वे कुछ अलग-अलग नहीं हैं। उनके नाम और उन पर लगे हुए लेबल अलग-अलग हो सकते हैं, ये सभी लोग अपने - अपने संस्कारों को और मन को पकड़े हुए हैं और ये सभी लोग मन में विश्वास करते हैं।
मैं धार्मिक उसे कहता हं जो मन के पार चला जाता है। मैं धार्मिक उसे कहता हं, जो मन की सभी कंडीशन, सभी शर्तों को छोड़ देता है, जो मन की पकड़ को ही छोड़ देता है, और धीरे -धीरे चैतन्य में उतरने लगता है, मन के जड़ -संस्कारों और मन की संकीर्ण धारणाओं के प्रति अधिकाधिक जागरूक होने लगता है।
और एक दिन उसी जागरूकता में मन के जड़-और संकीर्ण संस्कार धारणाएं छूट जाती हैं और तब व्यक्ति पहली बार स्वतंत्र होता है। और वही स्वतंत्रता एकमात्र स्वतंत्रता है। शेष अन्य सभी बातें स्वतंत्रता के नाम पर कूड़ा-कचरा हैं। स्वतंत्रता के नाम पर वे सभी बातें चाहे वे राजनीतिक हो, आर्थिक हों, या सामाजिक हों-बस कूड़ा-कचरा ही होती हैं। यथार्थ में तो केवल एक ही स्वतंत्रता का अस्तित्व है -और वह स्वतंत्रता है, जड-संस्कारों से स्वतंत्रता, मन की संकीर्ण धारणाओं से स्वतंत्रता, मन से स्वतंत्रता, और रोज-रोज अधिकाधिक सचेत और जागरूक होते जाना और अपने अस्तित्व के नए-नए आयामों में प्रवेश करते चले जाना।
सरोज, अच्छा हुआ कि तू इस बात के प्रति सचेत हो गयी कि प्रश्न हर बार वही के वही होते हैं। इसीलिए तो मैं उनका उत्तर नहीं देता हूं। क्योंकि जब मन अपनी पुरानी आदतों पर ही चलता रहता है तो फिर वह कुछ सुनना ही नहीं चाहता है। फिर प्रश्नों का उत्तर देना भी व्यर्थ होता है।
हमेशा नए की और ताजे की खोज करना-उसकी खोज करना जो कि बस अभी-अभी जन्म ले ही रहा है। इससे पहले कि मन बासा और पुराना हो जाए, नए को पकड़ लेना, इससे पहले कि मन कोई बना-बनाया निश्चित ढांचे को पकड़े, नए के साथ एक हो जाना। अपने जीवन को कभी भी किसी निश्चित ढांचे में मत ढाल लेना। जीवन में गति होनी चाहिए, जीवन हमेशा तरल और अज्ञात की ओर प्रवाहमान होना चाहिए।
और मन का अर्थ होता है, सब कुछ जाना-पहचाना, ज्ञात, जड़। और तुम अज्ञात हो।
अगर तुम इसे समझ लो, तो तुम मन का उपयोग कर सकते हो और तब मन तुम्हारा उपयोग कभी न कर सकेगा।