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एक बार एक परिवार गांव से शहर आया। छोटा बॉबी जब अपने मित्र से मिलने उसके घर जा रहा था तो मां ने बॉबी को यातायात के बारे में कुछ हिदायत देते हुए कहा, 'जब तक सड़क से सभी कारें न गुजर जाएं, तब तक कभी सड़क पार मत करना।' कोई एक घंटे बाद बॉबी रोता हुआ वापस आया। उसकी मां ने घबराकर पूछा, 'बॉबी क्या हुआ?' बॉबी बोला, 'मैं अपने दोस्त के घर नहीं जा सका। मैं इंतजार करता रहा, लेकिन कोई जरी ही नहीं।
उससे कहा गया था कि जब तक सड़क से सभी कारें न गुजर जाएं, तब तक वह सड़क पार न करे, प्रतीक्षा करे, लेकिन कोई कार गुजरी ही नहीं। सड़क खाली पड़ी थी, और वह कारों के निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था।
यही तुम्हारे भीतर की स्थिति है। सड़क हमेशा खाली है, उपलब्ध है, लेकिन तुम हो कि कारें ही खोजते रहते हो। तुम स्वयं ही विचारों को पकड़े रहते हो, और फिर परेशान होते हो। तुम्हारे भीतर विचार ही विचार चलते रहते हैं। उनकी भीड़ रोज-रोज बढ़ती चली जाती है। वे भीतर ही भीतर प्रतिध्वनि होते रहते हैं, गूंजते रहते हैं; और तुम हो कि उनके ऊपर ध्यान दिए चले जाते हो। तुम्हारा पूरा का पूरा दृष्टिकोण ही गलत है।
दृष्टि को बदलों। अगर विचारों को देखोगे तो मन निर्मित होता चला जाएगा। अगर विचारों के बीच के अंतरालों को देखोंगे, तो अपने से ही ध्यान घटने लगेगा। दो विचारों के बीच के अंतरालों का जोड़ ही ध्यान है, और दो विचारों के जोड़ का नाम ही मन है। यह दो दृष्टियां हैं, और यही दो संभावनाएं हैं तुम्हारे अस्तित्व की या तो मन के दवारा, विचारों के दवारा जी सकते हो, या फिर ध्यान के दवारा जी सकते हो, यही दो संभावनाएं हैं।
विचारों के बीच के अंतरालों को देखो। अंतराल तो मौजूद हैं ही, वे सहज और स्वाभाविक रूप से उपलब्ध हैं। ध्यान कोई ऐसी बात नहीं है जिसे किसी प्रयास के माध्यम से प्राप्त करना है। ध्यान तो मन की भांति पहले से ही मौजूद है। सच तो यह है ध्यान मन से भी अधिक मौजूद है, क्योंकि मन तो केवल लहरों की भांति सतह पर ही होता है, और ध्यान समद्र की अथाह गहराई की तरह मौजद
परमात्मा भी तुम्हें उतना ही खोज रहा है जितना कि तुम परमात्मा को खोज रहे हो। शायद तुम परमात्मा को होशपूर्वक नहीं खोज रहे हो। शायद तुम उसे अलग-अलग नामों में, रूपों में खोज रहे होओगे। शायद तुम परमात्मा को प्रसन्नता में, आनंद में खोज रहे होओगे। शायद तुम परमात्मा को संगीत में, नृत्य में खोज रहे होओगे। शायद तुम परमात्मा को प्रेम में खोज रहे होओगे। तुम परमात्मा को अलग-अलग ढंग, अलग-अलग रूपों में खोज रहे हो। नाम-रूप से कुछ भेद नहीं पड़ता है। लेकिन जाने-अनजाने उसकी खोज जारी है -तुम परमात्मा को खोज जरूर रहे हो। और एक बात