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7-क्या आप हमारे साथ केवल मौन रहेंगे और मुस्कुराएंगे?
पहला प्रश्न:
भगवान मैने सुना है कि एक बार पतंजलि और लाओत्सु एक नदी के किनारे पहुंचे। पतंजलि पानी पर चलते हुए नदी पार करने लगे। लाओत्सु किनारे पर ही खड़े रहे और पतंजलि को वापस आने के लिए कहने लगे।
पतंजलि ने पूछा 'क्या बात है?'
लाओत्स ने कहा 'नदी पार करने का यह कोई ढंग नहीं है।' और पतंजलि को उस जगह ले गए जहां पानी गहरा न था और उन्होंने साथ-साथ नदी पार की।
कहानी यात्री ने भेजी है। यह कहानी सत्य है। लेकिन यात्री, इस कहानी की तुम सबसे
महत्वपूर्ण बात तो भूल ही गए। पूरी कहानी को मैं तुम से फिर से कहता हूं।
मैंने सुना है कि पतंजलि और लाओत्सु एक नदी के किनारे पहुंचे। पतंजलि पानी पर चलते हुए नदी पार करने लगे। लाओत्स् किनारे पर ही खड़े रहे और उन्हें वापस आने के लिए कहने लगे। पतंजलि ने पूछा, 'क्या बात है?'
लाओत्सु ने कहा, 'नदी पार करने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि यही किनारा दूसरा किनारा है।' लाओत्सु का पूरा जोर इसी बात पर है कि कहीं जाने की कोई जरूरत नहीं है, दूसरा किनारा यहीं है। कुछ करने की जरूरत नहीं है। एकमात्र आवश्यकता है होने भर की। किसी भी प्रकार का प्रयास करना व्यर्थ है, क्योंकि जो कुछ तुम हो सकते हो, वह तुम हो ही। कहीं जाना नहीं है। किसी मार्ग का अनुसरण नहीं करना है। कुछ खोजना नहीं है। क्योंकि जहां कहीं भी तुम जाओगे, वह जाना ही लक्ष्य को चुका देगा। क्योंकि यहां सभी कुछ पहले से ही उपलब्ध है।
मैं एक और कहानी तुम्हें कहना चाहूंगा, जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है। इस कहानी का संबंध जरथुस्त्र से है। कहना चाहिए दूसरा लाओत्सु, जो कि सहज, स्वाभाविक, सरल, होने मात्र में भरोसा रखता था।