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आपको द्वार खुला रखना ही पड़ेगा। आपको मेरी प्रतीक्षा करनी ही है, और जब तक आप प्रतीक्षा करेंगे, द्वार खुला रहेगा, और मैं लोगों को बता सकूंगा कि यह रहा द्वार ।'
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यह है बोधिसत्व की अवस्था बोधिसत्व का अर्थ होता है वह व्यक्ति, जो कि बुद्धत्व के द्वार तक आ पहुंचा है। सच कहा जाए तो वह अस्तित्व में हमेशा-हमेशा के लिए विलीन हो जाने के लिए तैयार है, लेकिन करुणा के वशीभूत होकर वह स्वयं को रोककर रखता है। लोगों की मदद करने की आकांक्षा से वह वहां रुका रहता है। इस अंतिम आकांक्षा से कि लोगों की मदद करनी है - यह भी एक आकांक्षा ही है-उसे अस्तित्व में बनाए रखती है।
यह बहुत ही कठिन होता है, कहना चाहिए यह असंभव ही है – जब संसार से जुड़ी हुई सारी कड़ियां टूट जाती हैं, तो करुणा के नाजुक धागे द्वारा जुड़े रहना लगभग असंभव ही होता है। लेकिन यह
कुछ घड़ियां होती हैं, जब कोई बोधिसत्व की अवस्था को उपलब्ध होता है और वहीं ठहरा रहता है वही कुछ ऐसी घड़ियां होती हैं जब संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए द्वार खुला होता है, कि बोधिसत्व के माध्यम से द्वार को देख लें, उस द्वार को अनुभव कर लें, उस द्वार को जान लें और अंततः उसमें प्रवेश कर लें।
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'अपने से पहले के पांच चरणों की तुलना में ये तीनों चरण-धारणा, ध्यान, समाधि-ये आंतरिक हैं, लेकिन फिर भी निर्बीज समाधि की तुलना में तो ये तीनों बाह्य ही हैं।'
'निरोध परिणाम मन का वह रूपांतरण है जब मन में निरोध की अवस्थिति व्याप्त हो जाती है, जो तिरोहित हो रहे भाव - संस्कार और उसके स्थान पर प्रकट हो रहे भाव-विचार के बीच क्षणमात्र को घटित होती है।
यह सूत्र तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि तुम तुरंत इसको व्यवहार में ला सकते हो। पतंजलि इसे निरोध कहते हैं। निरोध का अर्थ होता है, 'मन का क्षणिक स्थगन अ-मन की क्षणिक अवस्था । इसका अनुभव सभी को होता है, लेकिन यह इतना सूक्ष्म और क्षणिक होता है कि इसका अहसास नहीं होता है। जब तक थोड़ी जागरूकता, थोड़ा होश न हो, इसे अनुभव करना असंभव है। पहले तो मैं यह बता दूं कि यह होता क्या है।
जब कभी मन में कोई विचार आता है, तो मन उसके द्वारा ऐसे आच्छादित हो जाता है जैसे आकाश पर कोई बादल छा जाए। लेकिन कोई भी विचार स्थायी नहीं हो सकता है। विचार का स्वभाव ही अस्थायी है। एक विचार आता है, वह चला जाता है; फिर कोई दूसरा विचार आता है और वह पहले वाले विचार का स्थान ले लेता है जब एक विचार जा रहा होता है और उसकी जगह दूसरा विचार आ रहा होता है, तब इन दो विचारों के बीच एक बहुत ही सूक्ष्म अंतराल होता है जब एक विचार जा