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तुम ऐसे तथाकथित जानकारों से सावधान रहना। अगर तुम अपने अंतर्तम केंद्र पर पहुंचना चाहते हो, तो अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में लेना। ऐसे तथाकथित विशेषज्ञों और जानकारों की सुनना ही मत, अभी तक उनकी बहुत सुन ली।
मैंने एक छोटी सी कथा सुनी है:
लोगों की कार्य – क्षमता जांचने वाला एक विशेषज्ञ किसी सरकारी कार्य की जांच -पड़ताल कर रहा था। इसी सिलसिले में वह एक आफिस में गया, जहां दो युवक एक डेस्क पर आमने -सामने बैठे हुए थे, और उन दोनों में से कोई भी काम नहीं कर रहा था।
'तुम्हें क्या काम सौंपा
गया है?' उस विशेषज्ञ ने उन में से एक से पूछा।
'मैं यहां पर छह महीने से हूं और मुझे अभी तक कोई काम नहीं सौंपा गया है, उस युवक ने उत्तर दिया।
'और तुम्हारे जिम्मे कौन -कौन से काम हैं?' कार्य – क्षमता जांचने वाले विशेषज्ञ ने दूसरे युवक से पूछा।
'मैं भी यहां छह महीने से हं
औ
मझे भी अभी तक कोई काम नहीं दिया गया है, उसने उत्तर दिया।
'ठीक है, तब फिर तुम में से एक को जाना होगा, उस विशेषज्ञ ने बड़े ही रूखेपन से कहा। एक ही काम को दो -दो लोग कर रहे हैं!'
दो व्यक्ति
एक ही काम को -कुछ भी न करने के काम को -कर रहे हैं।
विशेषज्ञ हमेशा जानकारी की भाषा में ही सोचता-विचारता है। किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाना जो प्रज्ञावान हो। वह कभी भी जानकारी की भाषा में नहीं सोचता। वह तुम्हें अपनी प्रज्ञा की आंख से देखता है। अभी तक दुनिया में तथाकथित जानकारों और विशेषशों का शासन रहा है। और यह संसार प्रज्ञावान व्यक्ति के पास होना भूल ही गया है। और मजा यह है कि विशेषज्ञ भी उतना ही सामान्य है, उतना ही जानकार है जितने कि तुम हो। विशेषज्ञ और तुम्हारे बीच केवल अंतर है तो इतना ही कि उसने कुछ पुरानी बातों की जानकारी इकट्ठी कर ली है। वह तुमसे थोड़ा अधिक जानता है, लेकिन उसकी जानकारी में उसका स्वयं का बोध नहीं है। उसने भी वह सभी जानकारी बाहर से ही एकत्रित की होती है, और वह तुम्हें सलाह दिए चला जाता है।
जीवन में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को खोजना, उसके पास जाना, उसके पास उठना – बैठना, यही है सदगुरु की खोज। पूरब में लोग ऐसे सदगुरु की खोज के लिए निकलते हैं, जो सच में ही ज्ञान को उपलब्ध हो गया है। और फिर जब वे उसे खोज लेते हैं -जो केवल ऊपर -ऊपर से दिखावा नहीं कर रहा है, जो सच में बुद्धत्व को उपलब्ध है, जिसके अंतर्तम का फूल खिल गया है –तो वे उस