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ज्यादा असुंदर हो जाता है। कम से कम मौलिक चेहरा जीवंत तो था, उसमें जीवन की, बुद्धिमत्ता की झलक तो थी। अब नकली और निर्जीव मुखौटे के पीछे जो असली रूप छिपा होता है वह भी छिप जाता है।
लोग संयम को बाह्य रूप से सजाने संवारने में रस लेने लगते हैं। मान लो कि एक आदमी क्रोधी है और वह क्रोध को छोड़ना चाहता है तो क्रोध छोड़ने के लिए उसे बहुत प्रयास करना पड़ेगा, और यह यात्रा लंबी है। इसके लिए उसे कुछ मूल्य भी चुकाना पड़ेगा। लेकिन स्वयं के ऊपर जबर्दस्ती करना, क्रोध को दबाना, कहीं अधिक आसान होता है सच तो यह है कि क्रोध की ऊर्जा का उपयोग क्रोध को दबाने में ही किया जा सकता है। इसमें कोई मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि कोई भी क्रोधित व्यक्ि क्रोध को बड़ी ही आसानी से जीत सकता है। केवल क्रोध को, क्रोध की ऊर्जा को स्वयं की ओर मोड़ देना है। पहले वह दूसरों के ऊपर क्रोधित होता था, अब वह स्वयं के ऊपर ही क्रोधित होता है, और क्रोध को दबाता रहता है। लेकिन वह चाहे क्रोध को कितना ही दबाए, क्रोध उसकी आंखों में छाया की भाति रहता ही है।
और ध्यान रहे, कभी कभी क्रोधित हो जाना उतना बुरा नहीं है, जितना क्रोध को दबा देना। और हमेशा क्रोधित बने रहना बहुत खतरनाक होता है। यही घृणा और घृणा के भाव के बीच का अंतर है। जब व्यक्ति क्रोध में अभक उठता है, तो वह घृणा करने लगता है। लेकिन वह घृणा क्षणिक होती है। वह आती है और चली जाती है। उसके लिए चिंतित होने की बात नहीं ।
लेकिन जब क्रोध को दबा दिया जाता है, तो घृणा ही जीवन का स्थायी ढंग बन जाती है। तब दबाया हुआ क्रोध व्यक्ति के व्यवहार को, उसके संबंधों को निरंतर प्रभावित करता रहता है। फिर ऐसा नहीं होता कि कभी कभी ही क्रोध आता है, अब वह पूरे समय क्रोधित ही रहता है। अब क्रोध किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं होता है, अब क्रोधित रहना उसका सहज स्वभाव ही बन जाता है। अब क्रोध उसके साथ ही रहता है, या कहना चाहिए कि वह क्रोध ही हो जाता है। अब वह यह ठीक-ठीक नहीं बता सकता क्रोध किसके प्रति है। अब तो क्रोधित रहना उसके जीवन का एक ढंग बन चुका है। वह क्रोध ही हो जाता है।
यह बुरी आदत है, क्योंकि फिर यह जीवन की एक स्थायी शैली हो जाती है। पहले तो क्रोध क विस्फोट की तरह था। कुछ बात हुई और आप क्रोधित हो गए। पहले तो वह केवल परिस्थिति या घटना के साथ होता था, और फिर चला जाता था। पहले तो क्रोध ऐसे था जैसे छोटे बच्चे क्रोधित हो जाते हैं वे एकदम आग के अंगारे की तरह लाल हो जाते हैं, और फिर जब क्रोध चला जाता है, तो वे एकदम पहले जैसे शांत हो जाते हैं जैसे तूफान के बाद एकदम शांति छा जाती है, ठीक ऐसे ही थोड़ी देर में वे सब कुछ भूलकर पहले जैसे ही प्रेमपूर्ण, सरल और शांत हो जाते हैं।