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लिए पूरा जीवन दांव पर लगाया जा सकता है। क्योंकि वह एक झलक भी बहुत मूल्यवान है, और उससे यह मालूम हो जाता है कि जीवन क्या है और उसकी नियति क्या है। और ऐसे तो सौ वर्ष भी तुम जीवन की गहराई से भयभीत सतह पर ही जीते रहोगे, और तब तुम जीवन के एक महत्वपूर्ण अवसर को गंवा दोगे।
यही वह निराशा और हताशा है, जिसे हमने अपने चारों ओर निर्मित कर लिया है -जीना भी चाहते हो और जी भी नहीं पाते हो, उन सब कामों को करते रहते हो जिन्हें कभी करना नहीं चाहते थे उन संबंधों से घिरे रहते हो जिन्हें तुम नहीं चाहते हो, ऐसे व्यापार –व्यवसाय को करते रहते हो जिसे करने की कभी कोई इच्छा नहीं थी-तो इस प्रकार असत्य में जीते हुए, कैसे यह असत्य से घिरे हुए, तुम आशा रख सकते हो कि तुम जान सकोगे कि जीवन क्या है? असत्य और झूठ से घिरे होने के कारण ही तो तुम जीवन को चूक रहे हो। इन उधार के झूठे मुखौटों के कारण ही तुम जीवन के प्रवाह के साथ नहीं जुड़ पाते हो।
और अगर तुम्हें इस वस्तु –स्थिति का पता भी चलता है, तो फिर एक दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है। जब भी लोग अपने असत्य और झूठे जीवन के प्रति सचेत होते हैं, तो तुरंत वे दूसरी विपरीत अति की ओर सरक जाते हैं। यह मन का ही जाल होता है, क्योंकि अगर तुम एक झूठ से दूसरी तरफ जाते हो, तो तुम फिर से एक दूसरे झूठ की ओर ही सरक जाते हो। जबकि सत्य इन दो विपरीत ध्रुवों के बीच ही होता है।
संयम का अर्थ है संतुलन। संयम का अर्थ है परम संतुलन इन दोनों अतियों की ओर न सरकना, बल्कि ठीक मध्य में रहना। जब न तो तुम दक्षिणपंथी हो और न ही वामपंथी, जब न तो तुम समाजवादी हो और न ही पूंजीवादी, जब तुम न तो यह होते हो, न वह होते हो, बल्कि मध्य में होते हो, तो अचानक तुम्हारे जीवन में संयम का परम फूल खिल जाता है।
एक बार ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन बहुत ही भयभीत था। वह भय उसके लिए जरूरत से ज्यादा ही हुआ रजा रहा था। तो मैंने मुल्ला को सलाह दी कि तुम किसी मनस्विद के पास जाकर उससे इलाज करवाओ। जब कुछ सप्ताह के बाद वह मुझे मिला तो मैंने मुल्ला से पूछा, 'मुझे मालूम हुआ है कि तुम उस मनस्विद के पास जा रहे हो, जिसके पास जाने की सलाह मैंने तुम्हें दी थी। क्या तुम्हें उससे कुछ फायदा हुआ है?'
'हां, उससे फायदा हुआ है। अभी कुछ दिन पहले तक तो जब फोन की घंटी बजती थी, तो मैं रिसीवर उठाकर जवाब देने में बुरी तरह से घबराता था।'
जब भी फोन की घंटी बजती, और वह भय के मारे कांपने लगता था। यह भय उसे सदा से ही था। बस, फोन की घंटी बजती और वह कांपने लगता। कौन जाने क्या बात हो? कौन सी बुरी खबर हो? कौन फोन कर रहा हो?