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'अभी
कुछ
दिन पहले तक तो मेरी यह हालत थी कि जब भी फोन की घंटी बजती थी, तो मैं रिसीवर उठाकर जवाब देने में बुरी तरह से घबराता था।’
'और अब? मैंने पूछा।
वह बौला, 'और अब? अब चाहे घंटी बजे या न बजे मैं तो सीधे फोन की तरफ जाता हूं और जवाब दे देता हूं।"
व्यक्ति एक अति से दूसरी अति की और सरक जाता है। अगर वह बाजार छोड़ेगा संन्यासी हो जाएगा। यह एक अति से दूसरी अति की ओर जाना है। जो लोग बाजार में रहते हैं ने भी असंतुलित हैं। और जो लोग मठ में, मंदिर में रहते हैं, वे भी असंतुलित हैं। वे दूसरी अति पर जी हैं, लेकिन दोनों ही असंतुलित हैं।
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एक झूठ से दूसरे झूठ तक एक भय से दूसरे भय तक तो मठ की, मंदिर की शरण ले लेगा। संसार छोड़ेगा तो
संयम का अर्थ होता है संतुलन यही मेरे सन्यास का अर्थ है संतुलित रहना। बाजार में रहना, लेकिन फिर भी बाजार को अपने भीतर न आने देना। अगर तुम्हारा मन बाजार में नहीं है, तो बाजार में रहकर भी कोई समस्या नहीं होती। मठ में, मंदिर में जाकर तुम अकेले भी रह सकते हो; लेकिन अगर साथ में भीतर बाजार आ जाए तो जो कि पीछे पीछे आ ही जाएगा, क्योंकि सच में तो बाजार बाहर नहीं है बाजार तो भीतर विचारों की भीड़ में और शोर शराबे में होता है और जब तक मन रहेगा, तब तक बाजार तुम्हारा पीछा करता ही रहेगा। यह कैसे संभव हो सकता है कि मन में तो विचारों की भीड़ चल रही हो, और तुम कहीं और चले जाओ? जहां कहीं भी तुम जाओगे, अपने मन के साथ ही तो जाओगे न? और तब फिर तुम जहां कहीं भी जाओगे, वैसे के वैसे ही रहोगे।
इसलिए परिस्थितियों से भागने की कोशिश मत करना। बल्कि ज्यादा जागरुक होने की ज्यादा होशपूर्ण होने की कोशिश करना। स्वयं के अंतस को बदलने का प्रयास करो, बाहर की परिस्थितियों को बदलने की फिक्र मत करो। इसी के लिए प्रयत्नशील रहो, क्योंकि जिसके लिए कोई मूल्य न चुकाना पड़े वह बात मन के लिए हमेशा लुभावनी होती है। मन कहता है, 'चूंकि बाजार में हजारों तरह की झंझटें हैं, चिंताएं हैं, परेशानियां हैं, इसलिए मंदिर में, मठ में जाकर छिप जाओ, और सभी झंझटें समाप्त हो जाएंगी। क्योंकि सारी झंझटों की जड़ ही - काम-काज की चिंता है, बाजार में भाव ऊपर जा रहे हैं या नीचे जा रहे हैं, घर परिवार की चिंता है अच्छा है कि मंदिर में या मठ में जाकर शरण ले
लो।
नहीं, चिंता का कारण बाजार नहीं है, चिंता का कारण घर परिवार और संबंध नहीं है - चिंता का कारण तुम स्वयं हो। यह सब तो बस बहाने हैं। अगर तुम मंदिर में या मठ में भी चले जाओ, तो यही चिंताएं कोई नए कारण खोज लेंगी, लेकिन चिंताएं बनी रहेंगी ।