Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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पक्ष्मचरित का परिचय : २३
शान्तरस के वर्णनों से पूरा पद्मचरित भरा पड़ा है। भोग से त्याग की और मनुष्य की वृत्तियों को उन्मुस्न कराने के लिए ही यह पूरा ग्रन्थ लिखा गया है। आत्मशुद्धि ही जीवन का मूलमन्त्र और मूललक्ष्य होना चाहिए । जिस प्रकार इंधन से अग्नि तृप्त नहीं होती और जल से समुद्र तप्त नहीं होता उसी प्रकार जब तक संसार है तब तक सेवन किये हुए विषयों से यह प्राणी तुप्त नहीं होला । इसी भावना के वशीभूत हुआ भरत सुन्दर स्थानों में भी बर्य को प्राप्त नहीं होता हुआ इस प्रकार चिन्तन करता है
मन्ष्य' पर्याय बड़े दुःख से प्राप्त होती है, फिर भी पानी की बूंद के समान अचल है, यौवन फैन के समान भंगुर तथा अनेक दोषों स संकटपूर्ण है।१४ भोग अन्तिम काल में रस से रहित हैं, जीवन स्वप्न के समान है और भाई बन्धुओं का सम्बन्ध पक्षियों के समागम के समान है ।११५ जो मूर्ख मनुष्यों को प्रिय है, अपबाद अर्थात् निम्दा का कुलभवन है एवं सन्ध्या के प्रकाया के ममान विनश्वर है ऐसे नवयौवन में क्या राम करना है ?९११ जो अवश्य ही छोड़ने योग्य है, अनेक श्याधियों का फूलभवन है और रजवीर्य जिसका मूलकारण है ऐसे इस शरीर स्पी यन्त्र में क्या प्रीति करना है ?११७ जिनका आकार गलगण्ड के समान है तथा जिनसे निरन्तर पसीना झरता रहता है ऐसे स्तन नामक मांस के घुणित पिण्डों में क्या प्रेम करना है ?१८ जिनका शरीर अपवित्र वस्तुओं से सम्मय है तथा जो कंवल चमड़े से आच्छादित है ऐसे स्त्रियों से उनकी सेवा करने पाले पुरुष को क्या सुख होता है ?११९ मूखमना प्राणी मलभूत घट के समान
१९३. पद्म ८३।५२ । ११४. लम्यं दुःखेन मानुष्यं घपलं जलबिन्दुवत् ।
यौवनं फेनपुम्न सदृशं दोषसङ्कटम् ।। पद्म ८३।४७ । ११५. समाप्तिविरसा भोगा जीवितं स्वप्नसन्निभम् ।
सम्बन्धो बन्धुभिः साई पक्षिसलमनोपमः ।। पद्म० ८३।४८ 1 ११६. यौवनेऽभिनवे रागः कोऽस्मिन् मूढकवल्लभे ।
अपषाबकुलायासे सन्थ्योद्योतमिनश्वरे ।। पद्म० ८३।५० । ११७. अवश्यं त्यजनीये च नानाध्याधिकुलालये ।
शुक्रशोणितसम्भूते देहयन्त्रेऽपि का रतिः ।। पद्म० ८३३५१ । ११८, गलगण्डसमानेषु क्लेदप्तरणकारिषु ।।
स्तनालयमांसपिण्डेषु बोभत्सेषु कथं रतिः ।। पदमः ८३१५४ । ११९. पक्ष्म० ८३।५८ ।