Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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५४ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
मार्ग में कटिदार वृक्ष पर स्थित काक द्वारा योतक होने के कारण अशुभ माना गया है। नवीन गोबर को बिखेरते हुए तथा पंखों को करते हुए चित्रित किया गया है, अतः शुभ माना गया है।
चलना,
प्राकृतिक तत्त्वों से प्राप्त शकुन - गमन के योग्य मन्द वायु का r वृक्षों का सब ऋतु के फल-फूल धारण करना, पृथ्वी का निर्मल होना. २०७ भूमि का सुगन्धित पवन द्वारा बुलि, पाषाण और कष्टक से रहित होना. दुर्भिक्ष का होना, २०९ निर्धूम अग्नि की ज्वाला दक्षिणावर्ट से प्रज्वलित होना २५० तथा सुगन्धि को फैलाती हुई वायु का बहना गया है ।
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शुभ माना
कठोर शब्द करना उसकी मृत्यु का यहां पद्मचरित में बायीं ओर फैलाते हुए काक को मधुर शब्द
बड़े-बड़े तालाबों का सूख जाना, पहाड़ों की चोटियाँ नोचे गिरना तथा आकाश से रुधिर की वर्षा होना २१२ थोड़े ही दिन में स्वामी के मरण की सूचना देने वाले हैं । परिवेष से युक्त सूर्य के बिम्ब में भयंकर कबन्ध दिखाई देना और उससे खून की बूँदों का बरसना, २१३ समस्त पर्वतों को कम्पित करने वाले भयंकर वज्र गिरना, २१४ सूर्य के चारों ओर शस्त्र के समान अत्यम्स रूक्ष परिशेष (परिमण्डल) रहना, पूरी रात्रि चन्द्रमा का छिपा रहना, १९६ भयंकर खपात होना, २१७ अत्यधिक सूकम्प होना, २१८_ २२० पूर्व दिशा में कांपती हुई रुषिर के समान उल्का गिरना २२१ तथा देवताओं की प्रतिमाओं का अभूजल की वर्षा के लिए दिन स्वरूप बनना अशुभ माना गया है ।
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२२२
शारीरिक लक्षणों से प्राप्त शकुन -निर्मल कान्ति वाला शरीर होना, शरीर का छाया रहित होना अर्थात् परछाई पड़ने से रहित होना, १२
नेत्रों का
२०५. पद्म० १५।३२ ।
२०७. वही, २१९५ /
२०९. वही, २९९ । २११ वी ५४|५१ ।
२१३. वही, ७ ४६ ।
२१५. वही ७२।७८ ।
P
२१७. वही, ७२७९ ॥
२१९. वही, ७११८० ।
२२१. वही, ७२।८२ | २२३. वही, २०१२ |
२०६. पद्म० २।९४ । २०८. वही, २९६
२१०, वही, ५४।५० ।
२१२, वही, ७२।८४-८५ ।
२१४. वही
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७४७ ।
२१६. वही, ७२/७१ ।
२१८. वही, ७२/७९१
२२०. वही, ७३।११ ।
२२२, वही, ७२८२ ।