Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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सामाजिक व्यवस्था : १११
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स्त्री के प्रति गुण तथा समय के अनुसार हे पावने ! (पावने), १८२० हे स्वामिनि ! ( स्वामिनि), ' हें साध्वि 1 (साध्वि), १०२२ हे सुन्दरि ! ( सुन्दरि ), १०२३ हे विदुषी ! (विदुषि), १०२४ हे शुभे ! ( शुभे), हे पूजिते ! (पूजिते ), १०२३ हे सुमुखि ! ( सुमुख), है प्रिये ! १०२८ हे वराननं १०५३ है भद्रे ! १०३० हे प्राणवल्लभे ! १०१५ हे सुन्दर जांघों वालो ! ( खरोस ), १०३२ है सुन्दर विलासों को धारण करने वाली ( सुविभ्रमे ), हेमुग्धे ! ( मुग्धे ), हे परम सुन्दरि ! (परम सुन्दरि ), हे सौम्यमुखी ! (सौम्य - यक्त्रे }, १०३६ हे मामिति (मामिति) १०१७ इत्यादि कहा जाता था । सामान्य व्यक्ति के लिए हे भव ! (भन ), हे कुलीन ! (सद्गोत्र), १०५९ हे भाई! (भातः) इत्यादि कहकर सम्बोधित किया जाता था |
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I
अपने कथन की सत्यता प्रमाणित करने के लिए शपथ या सौगन्ध खाने की परम्परा थी | लक्ष्मण ने वञ्चकर्ण तथा सिहोदर को कभी शत्रुता नहीं करेंगे इस प्रकार शपथ दिलाकर दोनों की मित्रता कराई थी ।१०४१ विभीषण और राम की मैत्री तब हुई जब विभोषण अपनी निश्छलता की शपथ खा चुका' लक्ष्मण ने भाई के साथ वन को जाते समय वनमाला को बहुत समझाया किन्तु वह न मानी तो लक्ष्मण ने शपथ खाई कि यदि मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास वापिस न आऊं तो सम्यग्दर्शन से हीन मनुष्य जिस गति को प्राप्त होत हैं उसी गति को प्राप्त होऊ । १०४१ में तुम्हारे पास न आऊँ तो साधुओं की निन्दा करने वाले अहंकारी मनुष्य के पाप से लिप्त होऊं । ५०४४ दो व्यक्तियों में परस्पर
१०२०, पद्म० ५३/५४ । १०२२. वही, ५३३५५ ।
१०२४. वहीं, ५२।८१ ।
१०२६. वहीं, ५३०५९ ।
१०२८. हो, ३८/३७ ।
१०३०. वही, ३८ ३७ |
१०३२. वही, ३८/४२ १०३४. बही, ३६।४८ । १०३६. वही, ५२/६३ ।
१०३८. वही, ५३/६३ ।
१०४०. वहीं, ५३।७१ ।
१०४२. वही, ५५/७३ ।
१०४४. वही, ३८/३९ ।
१०२१. १० ५३.५५ । १०२३. वहीं, ५२१८१ ।
१०२५. वही, ५३।५९
१०२७. वही, ३६ ४२ ।
१०२९. वही, ३८।३७ ।
१०३१. बही, ३८६४० ।
१०३३. वही, ३८/३८ । १०३५. वही, ३६ ४३
१०३७. वही ५२/६३
१०३९. वहीं, ५३/६४ ।
१०४१. वही, ३३।३०७१ १०४३. वही, ३८/३८ ।