Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कला : १४१
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शब्द मूगर्छ घातु से बना है जिसका अर्थ मोह और समुन्नाय (उत्सेष, उभार, चमकना, व्यक्त होना) है। मूच्छन पातु का अर्थ चमकना या उभारमा है । श्रुति की मृदु (उत्तरी हुई अयस्या) को कुछ लोगों ने पूछना कहा है, कुछ लोगों का कथन है कि रागरूपी' अमृत के हद (सरोवर) में गायकों और श्रोताओं के हृदय का निमग्न होना ही मूर्छना है परन्तु भरत-संगीत में मूछना का अर्थ सात स्वरों का अभपूर्वक प्रयोग ही है ।२५ पमचरित में गन्धर्य द्वारा इक्कीस मच्छना और ४९ ध्वनियों के प्रयोग का उल्लेख है । यहाँ इसकीस मुर्छना से तात्पर्य पड्ज ग्राम की इवकीस औडव तान तथा ४९ ध्वनियों से तात्पर्य सब मूर्च्छनाओ में की जाने वाली उनघास (षाहव) तानों से है ।
षड्ज ाम की इक्कीस और तानें उत्तरमध्यमा
१५ रे ग म x ध नि २ स ४ ग म ४ छ नि
३ सरे x म प ध रजनी
४ नी x रे ग म ४ ध ५ नी स x ग म x ध
६ x स रे म म प ध उत्तरायता
७ घ नी x रे ग म x ८ घ नी स x ग म x
९ घ x स रे x म प षड्जा
१० x ध नी x रे ग म ११ x घ नी स x म म
१२ प र x स रे x म मत्सरीकृता
१३ म x 5 नी x रे ग १४ म ४ ध नो स x ग
१५ म प ध x स रे x २५. कैलाशचन्द्रदेव बृहस्पति : भरत का संगीत सिद्धान्त, पृ० ३५, ३६ । २६. पन० १७।१२८ ।
२७. पन १७२८० । २८. भरत का संगीत सिद्धान्त, पु० ४६ ।
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