Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
कला : १७७
सप-सभा, धापिका, विमान तथा बाग-बगीचे से सुशोभित भवन को सदम कहते थे ।१५ रायमान को रासदा१६ कह : य: । ३में सजा लोग रहते थे । १७ राजाओं के साथ-साथ उनके भाई-बन्धुओं के रहने के लिए यह उपयुक्त होता था।१८ स्वर्णमय सद्म (काश्चनसम११) भी उस समय बनाये जाते थे।
गेह-रचना की दृष्टि से किकुपुर नगर का वर्णन प्रकट करने योग्य है । पद्मचरित के अनुसार किकुपुर नगर में विद्याधरों ने महलों की ऐसी ऊँचीऊँची श्रेणियाँ मनाकर तैयार की थीं जिनके सामने उसुङ्ग दरवाजे थे, जिनकी दीवालें मणि और स्वर्ण से निर्मित थी, जो अच्छे-अच्छे बरामदों सहित था, रत्नों के स्वम्भों पर खड़ी थीं, जिनकी कपोतपाली के समीप का भाग महानीलमणियों से बना था और ऐसा जान पड़ता था कि रत्नों को कान्ति ने जिस अम्धकार को सब जगह खदेड़ दिया था मानो उसे यहां अनुकम्पायश ही स्थान दिया गया पा। उन महलों की देहली पद्मरागमणि से निर्मित होने के कारण लाल-लाल दोख रही थी। उनके बरवाओं के ऊपर अनेक मोतियों की मालायें लटकाई गई यौं। मालाओं का किरणों से वे ऐसे जान पड़ते थे मानो अन्य भवनों की सुनदरता की हंसी उड़ा रहे हो । भवनों के शिखरों के ऊपर चन्द्रमा के समान आकार वाले मणि लगे हुए थे । मणियों के कारण रात्रि के समय असली चन्द्रमा के विषय में अम हो जाता था। चन्द्रकान्त मणियों को कान्ति से विद्याधरों के गेह उत्तम चांदनी की शोभा प्रकट करते थे तथा उनमें लगे नाना रत्नों की प्रभा से ऊँचे-ऊँचे तोरणों का सन्देह होता था। गेहों के मणिनिर्मित फशों पर रस्नमय चित्र बनाये गये थे । ३२०
गृह--सामान्यतः गृह राजन्यवर्ग से लेकर मध्यमवर्ग तक के व्यक्तियों के होते थे । पमचरित में विशेष वर्णन राजन्यवर्ग के गृहों का ही मिलता है । इस दृष्टि से बड़े-बड़े प्रासाद और गृहों में कोई अन्तर नहीं रह जाता। ५३. पर्व में गृह और चश्म का प्रासाद के अर्थ में प्रयोग करना इसका बहुत बड़ा प्रमाण है ।१२* सामान्यतः गृह की यह विशेषता थी कि उसके वातायन सड़क के दोनों ओर खुले रहते थे। छत पर अलिन्द-झरोखे भी होते थे। गृह का अग्रभाग
३१५. पद्म० ५३४२०२ । ३१७, वही, ४९।४८ । ३१९. वही, ६६५ । ३२१. यहो, ५३।२६४-२६६ ।
३१६. पा० ६५९३ ३१८. यही, ५११७८ । ३२०. वही, ६।१२४-१३० ।