Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
२१४ : पद्मवरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
रथसेना-४२ पर्व में स्वर्ण मगी अनेक नेसन टों के पास ने सुन्दर, उत्तमोत्तम स्तम्भों, वेदिका तथा गर्भगह से युक्त, ऊँचे मोतियों की मालाओं से शरोने वाले, छोटे-छोटे गोले, दर्पण, फम्नुस (लम्बूष) तथा खण्ड चन्द्र की सामग्री मे अलंकृत, शयन, आसन, वादित्र, वस्त्र तथा गन्ध आदि से भरे, चार हाथी जिसमें जुते थे और जो विमान के समान था ऐसे रथ पर सीतासहित गम, लक्ष्मण के घूमने का उल्लेख मिलता है । १३७ रय में गरुड़१९८. अश्व, ब्याघ्र४१, सिंह४५, हस्ति१४२ आदि वाहनों को जोला जाता था 1 बड़े-बड़े सामन्त १४३, सेनापति ४४ तथा राजा ४५ लोग प्रामः युद्ध के लिए रथ का उपयोग करते थे। रथ पर बैठने के लिए तकिया के सहारे से युक्त आसन बनाया जाता था । ४३
पदाप्ति सेना-पद्मचरित में पदाति सेना की योरता का अनेक स्थलों पर उल्लेख आया है। उदाहरण के लिए बारहवें पर्व वाला युद्धवर्णनाणों से योद्धाओं का वक्षःस्थल तो खण्डित हो गया, पर मन खण्डित नहीं हुआ। इसी प्रकार योद्धाओं का सिर तो गिर गया, पर मान नहीं गिरा। उन्हें मृत्यु प्रिय थी, पर जीवन प्रिय नहीं था ।१४ कोई एक योद्धा मर सो रहा पा, पर शत्रु को मारने की इच्छा से क्रोषयुक्त हो अब गिरने लगा तो शत्रु के शरीर पर आक्रमण कर गिरा । १४८
विद्याधर-सेना-विद्याबल से भी युश होता था । विद्याबल से युक्त संकासुन्दरी ने हनुमान के हिमालय के समान ऊंचे रथ पर बजदण्ड के समान नाण, परशु, कुन्त, चक्र, शतघ्नी, मुसल तथा शिलाये उस प्रकार बरसाई, जिस प्रकार कि उत्पात के समय उच्च मेघावली नाना प्रकार के जल बरसाती है । १४९ रावण जब बहरूपिणी विद्या में प्रवेश कर युद्ध करता था तम उसका सिर लक्ष्मण के तीक्ष्ण बाणों से बार-बार कट जाता था, फिर भी बार-बार देदीप्यमान
१३७. पद्म ४२१२०५ ।
१३८. पप० ७४।३३ । १३९, वही, १०२।१९५ ।
१४७. बही, ५७५२३ १४१. वही, ५७१४८।
१४२. वही, ७४।६। १४३. वही, ५७८ ।
१४४. बही, ९७४५४-५५ । १४५. बही, ४५।९३ ।
१४६. वही, १७।८१ । १४७. अभिधत कारवक्षों भटानां न तु मानसम् ।
शिरः पात नो मानः कान्तो मुत्युनं जीषितम् । पप १२२२७६ । १४८, पद्म १२१२७८ ।
१४९. पा० ५२।४०-४१ ।