Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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धर्म और दर्शन : २७६
नहीं होता क्योंकि जो सर्वज्ञ वीतराग है वह वक्ता नहीं हो सकता और जो सकता । अशुद्ध अर्थात् रागी द्वेषी मनुष्यों और इनसे विलक्षण कोई सर्वज्ञ नहीं,
वक्ता है वह सर्वज्ञ श्रीतराग नहीं हो के द्वारा कहे हुए वचन मलिन होते हैं क्योंकि उसका साधक कोई प्रमाण नहीं पाया जाता । १६५
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इसके उत्तर में नारद कहता है कि संवर्ष के मत के अनुसार यदि सर्व प्रकार के सर्वश का अभाव है तो शब्दसर्वज्ञ, अर्थसर्वज्ञ और बुद्धिसर्वश इस प्रकार सज के तीन वह बाधित होता है । ११७ यदि शब्दसर्वंश और बुद्धिसर्वज्ञ तो है पर अर्थ सर्वज्ञ कोई नहीं है तो यह कहना नहीं बनता क्योंकि गो आदि समस्त पदार्थों में शब्द अर्थ और बुद्धि तीनों साथ हो साथ देखे जाते हैं । १३८ यदि पदार्थ का बिलकुल अभाव है तो उसके बिना बुद्धि और शब्द कहीं टिकेंगे। इस प्रकार का अर्थ वृद्धि और वचन के व्यतिक्रम को प्राप्त हो जायगा । १९ बुद्धि में जो सर्वश का व्यवहार होता है वह गौण है और गौण व्यवहार सदा मुख्य की अपेक्षा करके प्रवृत्त होता है। जिस प्रकार चैत्र के लिए सिंह कहना मुरूप सिंह की अपेक्षा रखता है उसी प्रकार बुद्धिसर्वज्ञ वास्तविक सर्वज्ञ की अपेक्षा रखता इस अनुमान से सर्वज्ञ नहीं है इस प्रतिज्ञा में विशेष बाता है। २४१ हमारे मत में सर्वश का सर्वथा अभाव नहीं माना गया जिसकी महिमा व्याप्त है ऐसा यह सर्वदर्शी सर्वज्ञ कहाँ रहता है उत्तर में कहा गया है कि दिव्य ब्रह्मपुर में आकाश के समान सुप्रतिष्ठित है। तुम्हारे इस आगम से प्रतिज्ञावाक्य विरोध को प्राप्त होता है। यदि सर्वया सर्वज्ञ का अभाव होता तो तुम्हारे आगम में उसके स्थान आदि की चर्चा क्यों की जाती ? और इस प्रकार साध्य अर्थ के अनेकान्त हो जाने पर अर्थात् कथंचित् सिद्ध हो जाने पर वह हमारे लिए सिद्ध साधन है क्योंकि हम भी तो यही कहते हैं ।
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#s पृथ्वी में इस प्रश्न के निर्मल आरमा
भी
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सर्वेश के अभाव में जो वक्तृत्व हेतु का होता है - सर्वथा अयुक्त वक्तृत्व
३३५. पद्म० ११।१६५ । ३३७. पद्म० ११ । १७२ ।
३३९. पद्म० ११ १७४ ।
३४१. वही, ११।१७६ । ३४३. वही, ११।१७७३
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दिया गया है वह वक्तृत्व तीन प्रकार युक्त वक्तृत्व और सामान्य वक्तृत्व ।
३३६. पथ० ११ १६६ ।
३३८. वही, ११।१७३ । ३४०. वही, ११।१७५ ।
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३४२. बही, ११।१७६ । ३४४. वही, ११।१७८ ।