Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 302
________________ २९० : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति सीता यथार्थ में जनक की हो ओरस कन्या वो, उसका एक भाई भामंडल मी था । राम ने लेखों द्वारा किए गए आक्रमण के समय जनक की सहायता को, उसी के उपलक्ष्य में जनक ने सीता का विवाह राम के साथ करने का निश्चय किया । 21 सीता के भ्राता भामंडल को उसके बचपन में ही एक विद्याघर हर ले गया था । २२ युवक होने पर तथा अपने माता-पिता से अपरिचित होने के कारण उसे सीता का चित्रपट देखकर उसपर मोह उत्पन्न हो गया था, वह उसी से अपना विवाह करना चाहता था । इसी विरोध के परिहार के लिए धनुष परीक्षा का आयोजन किया गया जिसमें राम की विजय हुई। दशरथ ने जब वृद्धावस्था आयी जान राज्य भार से मुक्त हो वैराग्य धारण करने का विचार किया, तभी गम्भीर स्वभाव वाले भरत को भी वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया। इस प्रकार अपने पुत्र सोनों के साथ वियोग की आशा से भयभीत होकर केकया ने अपने पुत्र को गृहस्थी में बांधने की भावना से उसे हो राज्य पद देने के लिए दशरथ से एकमात्र वर माँगा और राम दशरथ की आज्ञा से नहीं, किन्तु स्वेच्छा से वन को गए ।२४ इस प्रकार कैकेयी ( केकया) की किसी दुर्भावना के कलंक से बचाया गया है। रावण के आधिपत्य को स्वीकार करने के प्रस्ताव को ठुकराकर बाकि स्वयं अपने लघु भ्राता सुग्रीव को रावण को राज्य देकर दिगम्बर मुनि हो गया था, राम ने उसे नहीं मारा यहाँ ज्ञानी और व्रती चित्रित किया गया है। वह सीता का अपहरण तो कर के गया, किन्तु उसने उसकी इच्छा के प्रतिकूल बलात्कार करने का कभी विश्वार या प्रयत्न नहीं किया और प्रेम की पोड़ा से घुलता रहा। जब मन्दोदरी ने रावण के सुधार का कोई दूसरा उपाय न देख सच्ची पत्नी के नाते उसे बलपूर्वक अपनी इच्छा पूर्ण कर लेने का सुझाव दिया तब उसने यह कहकर उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि मैंने अनन्तवीर्य केवली के समीप किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध कभी संभोग न करने का व्रत ले लिया है, जिसे मैं कभी भंग न करूँगा | 28 रावण के स्वयं अपने मुख से इस व्रत के उल्लेख द्वारा कवि ने न केवल उसके चरित्र को उठाया है, किन्तु सीता के अखंड पातिव्रत का प्रमाण उपस्थित कर दिया है। रावण को मृत्यु यहाँ राम के हाथ से नहीं अपितु लक्ष्मण के हाथ से कही गई है। २७ राम के पुत्रों के नाम यहाँ अनङ्गलवण २१. बही, २७।१२ । ܘܐܐ २०. पद्म० २६ / १२१ । २२. हो, २६१२१ । २३. वही, २८।१६९-१७१, २४१-२४३ । २४. वही, पर्व २१ । २५. वही, ९।५० ९० । २६. वही, ४६२५०-५३, ५५, ६५०६९ । २७. वहीं, ७६।२८-३४ ।

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