Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२९८ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
उस समय दर्पण में अपना मुख देख रही थी। नारद की प्रतिकृति दर्पण में देख वह भयभीत हो उठी। इस पर क्रुद्ध हो नारद ने भामण्डल को सीता प्राप्ति के लिए उकसाया। हरिवंश पुराण के ५४ में सर्य में नारद द्रौपदी के घर जाते हैं। द्रौपदी उस समय आभूषण धारण करने में व्यस्त थी इसलिए नारद ने क प्रवेश किया और कब निकल गये यह यह नहीं जान सकी। इसपर नारद ने पूर्ववाकी खण्ड के भरत क्षेत्र के एक राज पद्मनाभ के पास जाकर द्रौपदी के सौंदर्य का वर्णन किया, जिससे उसने द्रौपदी का हरण कर लिया 1
पद्मचरित के बीस पर्व में तीर्थंकर तथा अन्य शलाकापुरुषों का वर्णन किया गया है। हरिवंश पुराण के ६० सर्ग में त्रेसठ शलाकापुरुषों का वर्णन किया गया है, जो पद्मचरित से मिलता जुलता है तथा विस्तार में पद्मचरित से कुछ अधिक है । इसके अतिरिक्त यहां भविष्यत्कालीन शट डालाकापुरुषों की नामावली भी दी गई है। पद्मचरित में राम लक्ष्मण का राम के पुत्रों लव और कुश के साथ युद्ध होता है । युद्ध में राम लक्ष्मण उनको जीतने में असमर्थ रहते हैं तब नारद की सम्मति से सिद्धार्थ नाम का क्षुल्लक उनका परिचय दे कर मिलन कराता है। 10 हरिवंश पुराण में भी प्रद्युम्न का कृष्ण बल्देव के साथ युद्ध होता हूँ | कृष्ण बल्देव उसको जीतने में असमर्थ रहते हैं, उसी समय fert के द्वारा प्रेरित नारद आकर पिता पुत्र का सम्बन्ध बतला दोनों का मिलन कराता है । १
पद्मचरित में राम कृतान्तवक्त्र सेनापति के दीक्षा लेने के समय उससे कहते हूँ कि यदि तुम अगले जन्म में देव होओ तो मोह में पड़े हुए मुझे सम्बोधित करना न भूलना 142 हरिवंश पुराण में बलदेव सिद्धार्थ नामक सारथि से जो उनका भाई था, उसके दीक्षा लेते समय कहते हैं कि कदाचित् में मोहजन्य व्यसन को प्राप्त होऊं तो मुझे सम्मोषित करना । 3 बाद में कहे अनुसार दोनों ने मोह के समय शेमों (राम और वलदेव) की सहायता की ।" यहाँ पर राम और बलदेव की चेष्टाओं में बहुत कुछ समानता है ।
धर्म की निरूपण की पद्धति दोनों प्रम्यों में एक सी है। कि पद्मचरित में यह संक्षेप रूप में और हरिवंश पुराण में मिलती है ।
६०. पद्म० पर्व १०२, १०३ ।
६१. हरिवंश पुराण ४७।१२६-१३२ ।
६३. हरिवंश पुराण ६१०४१ ।
६४. पद्म पर्व ११८, हरिवंश पुराण सर्ग ६३ ।
इतना विशेष है विस्तृत रूप से
६२. पद्म० १०७/१४-१५ ।