Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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धर्म और वर्षान : २८५
१०. कुलिंगी जो गांव में एक रात और नगर में पांच रात रहता है, निरन्तर ऊपर की ओर भुजा उठा रहता है, माह में एक बार भोजन करता है, मृगों के साथ जंगल में शयन करता है, भृगुपात करता है, मौन से रहता है और परिग्रह का त्याग करता है वह मिच्यादर्शन (विपरीत श्रद्धान) से दूषित होने के कारण कुलिंगी है। ऐसे जीन पैरों से चलकर अगम्य स्थान (मोक्ष) महीं प्राप्त कर सकते । १७
११. मस्करी४८
१२. कृतान्त, विधि, देव तथा ईश्वर को मानने वाले--ऐसे लोगों के मत के विषय में कहा गया है कि पूर्व पर्याय में जो अच्छा या बुरा कर्म किया है वही कृताम्त, विधि, दैव अथवा ईश्वर कहलाता है। मैं पृथक् रहने वाले कृतान्त के द्वारा इस अवस्था को प्राप्त कराया गया हूँ ऐसा जो मनुष्य का निरूपण करना है वह अज्ञानमूलक है।४१५
१३. इसके अतिरिक्त काल, कर्म, स्वभाव, पुरुष, क्रिया अथवा नियति को मानने वाले लोगों के अस्तिख का पता भी पद्मपरित से चलता है ।४४० ___ अधार्मिक क्रियायें-दया, दम, क्षमा, संवर, (कर्मों का बागमन रोकना) का मान तथा परित्याग का न होना, ४१ हिंसा, झूठ, पोरी, कुशील और परिप्रह का आश्रय करना,४४२ दीक्षा लेकर पाप में प्रवृत्ति करना," धर्म के बहाने सुख प्राप्त करने के लिए छह काय (पृथ्वी, आप, तेज, वायु, तथा वनस्पति काय या स) के जीवों को पीड़ा पहुँचाना,१४ मारना, ताड़ना, बापना, औफमा, तथा दोहना आदि कार्य करना तथा दीक्षा लेकर भी ग्राम, नेत आदि में आसक्त होना,४४५ वस्तुओं के खरीदने बेचने में आसक्त होना, स्वयं भोजनादि पकाना, दूसरे से याचना करना, स्वर्णादि परिग्रह साप रखना," मर्दन, स्नान, संस्कार, माला, घूप, विलेपन, आदि का सेवन करना, हिंसा को निर्दोष कहते हुए शास्त्र वेष तथा चरित्र में दोष लगाना। ये सब अधार्मिक क्रियायें कही गई है।
कुकृत-सुकृत-अत्यधिक क्रोध करना, परपीड़ा में प्रीति रखना और रूक्ष (कठोर, रूखे) वचन बोलना यह कुकूत है । विनय, श्रुत, पोल, दयासहित वचन, ४३७. पन १०५।२३५-२३७ । ४३८. पप. ४१।६१ । ४३९, वही, ९६१९,१० ।
४४०, वही, ३१२१३ । ४४१. वही, १०५।२२७ ।
४४२. पण. १०५।२२८ । ४४३. वही, १०५।२२९ ।
४४४, पप० १०५।२३० । ४४५, वही, १०५४२३१ । ४४६. वही, १०५।२३२ । ४४७. वही, १०५।२३३ ।
४४८. वही, १०५।२३४ ।