Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२८६ : पद्मपरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
अमात्सर्य और क्षमा ये सुकृत है।४४९ मुकुत के फल से यह जीव उच्च पद तथा उत्तम सम्पत्तियों का भण्डार प्राप्त करता है और पाप के फल से फुगति सम्बन्धी दुःख को पाता है।५०
मुक्ति का साधन-मुक्ति के लिए राग छोड़ना आवश्यक है क्योंकि वैराग्य में आरून मनुष्य को मुक्ति होती है और रागी मनुष्य का संसार में डूबना होता है। जिस प्रकार कण्ठ में शिला बाँधकर नदी नहीं तेरी जा सकती उसी प्रकार रागादि से संसार नहीं सिरा जा सकता । जिसका चित्त मिरन्तर ज्ञान में लीन रहता है तथा जो गुरुजनों के कहे अनुसार प्रवृत्ति करता है ऐसा मनुष्य ही शान, शील आदि गुणों की आसक्ति से संसार को तैर सकता है।५९
४५७. वही, १२३।१७६ ।
४४२, पप० १२३।१७५.। ४५१. वही, १२३।७४-७६ ॥