Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
२८४ : पचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति जननेन्द्रिय को लंगोट से बाच्छादित कर लिया । ये यज्ञोपवीत धारण१२४ करते थे । भृगु, अगिशिरस, पन्हि, कपिल, अषि तथा पिर आदि अनेक एसे तापसों का यही नाम आया है।४२५
२. पृथ्वी पर सोने २५ वाले-ऐसे व्यक्ति जो पृथ्वी पर सोने में धर्म मानते थे।
३. भोजन त्यागी २७-जो चिरकाल तक भोजन का त्याग रखते थे ।
४. पानी में डूबे रहने वाले ऐसे व्यक्ति जो रात दिन पानी में डूने रहते थे। पद्मपरित में धर्म मानकर ऐसा करने वालों को दुर्गसि का पात्र बतलाया है।४२९
५. भृगुपाती-पहाड़ को चोटी से गिरने वाले । ५० जो इसी में धर्म मानते थे।
६. शरीरशोषिणी क्रिया करने वाले कुछ व्यक्ति ऐसे थे जो शरीर सुखाने वाली क्रियायें करते थे, जिनसे मरण भी हो सकता था। यह भी कुछ लोगों के धर्म साधन का एक प्रकार था । पद्मचरित में इन समका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भले ही इस प्रकार की क्रियायें करे, लेकिन पुण्यरहित अपना मनोरथ सिद्ध नहीं कर सकता ।
७. तीर्थ क्षेत्र में स्नान करने वाले, दान देने वाले तथा उपवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों के विषय में कहा गया है कि यदि ये मांस भोजन करते है तो उनके उपर्युक्त कार्य नरफ से बचाने में समर्थ नहीं है।४३६
८. शिर मुंडाना (शिरसो मुण्डन), स्नान तथा नाना प्रकार के वेष धारण करना (विलिंग ग्रहण)-इन कार्यों से भी मांसभोजी मनुष्य की रक्षा नहीं हो राकती ।४३४
९. अग्नि प्रवेश करने वाले १५–पपरित में ऐसे लोगों के विषय में कहा गया है कि जो इस प्रकार के पाप करते हैं वे आत्महित के मार्ग में मूढ है और दुर्गति को प्राप्त होते हैं।४३६
४२४. पद्म० ४११२७-१२८ । ४२६. वही, ७।३१९॥ ४२८. वही, ७३१९ । ४३०. वही, ७१३१९ । ४३२. वही, ७।३२० । ४३४. वही, २६६८। ४३६. वही, १०५:२३८ ।
४२५. पन. ४६१२६ । ४२७. वही, ७।३१९ । ४२९. वही, १०५।२३८ । ४३१. वही, ७।३२० । ४३३. वही, २६६६८। ४३५. वही, १०५:२३८ ।