Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 290
________________ २७८ : पपपरित और नसमें प्रतिपादित संस्कृति माता ने गुरु-दक्षिणा के वचन का स्मरण दिलाकर वसु को इस बात के लिए राजी कर लिया कि पर्वत के पक्ष में निर्णय देना है। बाद में जब शास्त्रार्य इया तो बसु ने पर्वत के पक्ष में निर्णय दिया जिससे उसका स्फरिक सिंहासन पृथ्वी पर गिर पड़ा 139 नारद द्वारा समझाए जाने पर भी उसने अपनी कही हुई बात को ही पुष्टि की । अतः यह शोघ्र ही सिहासन के साथ पृथ्वी में धंस गया । पर्चत लोक में धिक्कार रूपी दण्ड प्राप्त कर कुतप करने लगा। इसके बाद वह मर कर प्रबल पराक्रम का धारक राक्षस हुआ |101 अपने पूर्व जन्म के पराभव का स्मरण करते हुए उसने बदला लेने के लिए कपटपूर्ण शास्त्र रचकर ऐसा कार्य करने का निश्चय किया जिसमें आसक्त हुए मनुष्य तिर्यंच अथवा नरक गति में जावे ।२७७ इसके बाद उस राक्षस ने मनुष्य का वेष रखा, बायें कन्चे पर यनोपवीत पहिना और हाथ में कमण्डल सथा अक्षमाला अादि सपकरण लिए । ७० भविष्य में जिन्हें दुःख प्राप्त होने वाला था ऐसे मूर्ख प्राणो उसके पक्ष में इस प्रकार पड़ने लगे जिस प्रकार अग्नि में पतंगे पड़ते है ।५७९ वह उन लोगों से कहता था कि मैं वह ब्रह्मा हूँ जिसने चराचर विश्व की रचना की है। यज्ञ की प्रवृत्ति चलाने के लिए मैं स्वयं इस लोक में आया हूँ । १८० मैंने बड़े भादर से स्वयं ही यज्ञ के लिए पशुओं की रचना की है। यथार्थ में यज्ञ स्वर्ग की बिमति प्राप्त कराने वाला है इसलिए मन में जो हिंसा होती है वह हिंसा नहीं है । ८१ सौत्रामणि नामक यज्ञ में मदिरा पीना दोषपूर्ण नहीं है और गोसव नामक यश में अगम्या अर्थात् परस्त्री का भी सेवन किया जा सकता है । ३८२ मातृमेघ यज्ञ में माता का और पितमेष यज्ञ में पिता का षष वेदी के मध्य में करना चाहिए इसमें दोष नहीं है । ३८ कछुए की पीठ पर अग्नि रखकर जुलक नामक देव को बड़े प्रयत्न से स्वाहा शब्द का उच्चारण करते हुए साकल्य से संतप्त करना पाहिए । १५४ अदि इस कार्य के लिए कक्षा न मिले तो एक गजे सिर वाले पोले रंग के शुद्ध ब्राह्मण को पवित्र जल में मुख प्रमाण नीचे उतारे अर्थात उसका शरीर मुख तक पानी में डूबा रहे ऊपर केवल कछुआ के आकार मस्तक निकला ३७३. पम० १११६२ । ३७५. वही, १९७१ । ३७७. वही, १११७७-७८ । ३७९. वही, ११३८२ । ३८१. वही, १९८४ । ३८३. वही, ११०८६ । ३७४. वही, ११।६८ ।। ३७६. वही, ११७५-७६ । ३७८. बही, ११२७९ । ३८०. वही, ११।८३ । ३८२. वही, ११३८५ । ३८४. वही, ११५८७ ।

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