Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२२४ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
प्राचीनकाल में बीरभोग्या वसुंधरा का सिद्धान्त प्रचलित था। जो लोग शासन की अवहेलना करते थे या आज्ञा नहीं मानते थे ऐसे राजाओं के विरुद्ध दूसरे राजा जो अपने बुद्ध किया थे । राजा माली वेश्या, वाहून, विमान, कन्या, वस्त्र और आभूषण आदि जो श्रेष्ठ वस्तु गुप्तचरों से मालूम करता था उसे शीघ्र ही बलात् अपने यहां बुलवा लेता था । वह बल विद्या विभूति आदि में अपने आपको श्र ेष्ठ मानता था । २९९ इन्द्र का आश्रय पाकर जब विद्याधर राजा माली की माशा भंग करने लगे तब वह भाई तथा किष्किन्ध के पुत्रों के साथ युद्ध करने के लिए विजयागिरि की ओर चला । १००
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प्राचीन काल के अनेक युद्धों का कारण कन्या रही है । पद्मचरित में वर्णित राम-रावण का युद्ध इसका बड़ा उदाहरण है । इसके अतिरिक्त अभ्य भी अनेक उदाहरण यहाँ मिलते हैं। राजा शकषनु की कन्या अथचन्द्रा का विवाह जब हरिषेण के साथ हुआ तब इस कन्या ने हम लोगों को छोड़कर भूमिगोचरी पुरुष ग्रहण किया है ऐसा विचारकर कन्या के मामा के लड़के गंगाधर और महीधर बहुत ही क्रुद्ध हुए । बाद में युद्ध हुआ जिसमें हरिषेण विजयो हुआ । इसी प्रकार केकया ने जब दशरथ के गले में वरमाला डाली तब अन्य राजाओं के साथ दवारथ का मुद्ध हुआ ।
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साम्राज्य विस्तार की अभिलाषा के कारण राजा लोग अनेक युद्ध लड़ा करते थे । लक्ष्मण ने समस्त पृथ्वी को वश में कर नारायण पद प्राप्त किया था । १०३ सगर चक्रवर्ती छह खंड का अधिपति था तथा समस्त राजा उसकी माता मानते थे । ३०४ इस प्रकार साम्राज्य विस्तार की प्रवृत्ति अधिकांश बलशाली राजामों में दिखाई देती है । इसके कारण युद्ध अनिवार्य रूप से हुआ करते थे ।
कभी-कभी स्वाभिमान की रक्षा के लिए भी युद्ध हुआ करते थे । चक्ररन के अहंकार से चूर जब भरत ने बाहुबलि पर आक्रमण किया तब मैं और भरत एक ही पिता के दो पुत्र हैं इस स्वाभिमान के कारण उसने भरत के साथ मुख किया और दृष्टियुद्ध, मल्लयुद्ध तथा जलयुद्ध में परास्त कर अन्त में विरमित के कारण दीक्षा ले ली । ३०५
गुणसिद्धान्त -- पद्मचरित के पष्ठ पर्व में राजा कुण्डलमण्डिल को गुणात्मक ( गुणों से युक्त ) कहकर उसकी विशेषता बतलाई गई है। यहाँ इन गुणों से २९९. पद्म० ७१३५-३६ ।
२०१. बही, ८३७४ ।
३०३. वहीं, ९४११० । ३०५. वही, ४१६७-७४ ।
३००, प० ३।३७ |
३०२ . वहीं, पर्व २४ । ३०४. वहीं, ५१८४