Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
२३८ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
अहिंसा व्रत की पांच भावनाये वाग्गुप्ति-वचन को रोकना । मनोगुप्ति-मन की प्रवृत्ति को रोकना । ईर्यासमिति-चार हाथ जमीन खकार चलना ।
आदान निक्षेपण समिति-भूमि को जीवरहित देखकर सावधानी से किसी वस्तु को उठामा, रखना ।
आलोकितपानभोजन-देख शोधकर भोजनपान ग्रहण करना, ये पांच अहिंसानस की भावनायें हैं।
सत्यनत को नाममा क्रोधप्रत्याख्यान-क्रोध का त्याग करना । लोभप्रत्याख्यान-लोभ का त्याग करना । भोरुत्वप्रत्याख्यान-मय का त्याग करना । हास्यप्रत्याख्यान-हास्म का त्याग करना । अनुवीचिभाषण-शास्त्र की आज्ञानुसार निर्दोषवचन बोलना 1 ये पांच सत्पन्नत की भावनायें हैं।
अचौर्यवत की भावनायें शून्यागारवास-पर्वतों की गुफा, वृक्ष को कोटर आदि मिर्जन स्थानों में रहना।
विमोचितावास-राजा वगैरह के द्वारा छुट्याए हुए दूसरे के स्थान में निवास करना।
परोपरोधाकरण-अपने स्थान पर ठहरे हुए दूसरे को नहीं रोकना । भेक्ष्यशुद्धि-शास्त्र के अनुसार भिक्षा की शुद्धि रखना।
सधर्माविसवाद-सहधर्मी भाइयों से यह हमारा है, वह आपका है इत्यादि कलह नहीं करना ।
ये पांच अचौर्यव्रत की भावनायें है।४७
४५. तत्त्वार्थसूय ७४ । ४६. 'क्रोघलोभभोरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणं च पञ्च। वहीं, ७५ ४७. 'शून्यागारघिमोषितावासपरोपरोधाकरणभक्ष्यशुद्धिसधर्माविसमादाः पञ्च'
तत्त्वार्थसूत्र ७६