Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 263
________________ धर्म और दर्शन २५१ उपद्रव से रहित होना, १७८ १८१ आदि सुफल विशाल सुख, १७७ दान का फल –दान से भोग प्राप्ति, विशाल सुखों का पात्र होना, उतम गति, १८० १७९ प्राप्त होते हैं । तीर्थंकर की प्राप्ति - शीषों की नाना दशाओं का निरूपण करते हुए रविषेण ने कहा है कि कितने हो धैर्यवान मनुष्य षोडश कारण भावनाओं का चिन्तन कर तीन लोक में क्षोभ उत्पन्न करने वाले तीर्थकर पद प्राप्त करते हैं । १८ षोडश कारण मावनायें ये हैं १. दर्शनविशुद्धि - जिनोपदिष्ट निश्च मोक्षमार्ग में दषि दर्शन विशुद्धि १८३ हूँ । २. विनयसम्पन्नता - सम्यग्ज्ञान आदि मोक्ष के साधनों में तथा ज्ञान के निमित्त गुरु आदि में योग्य रीति से सत्कार आदर आदि करना तथा कृपाय की निवृत्ति करना विनयसम्पन्नता है । १९४ ३. शीलवतेष्वनतिचार - अहिंसा आदि व्रत या उनके परिपालन के लिए कोषदर्जन आदि गीलों में काय, वचन और मन को निर्दोष प्रवृत्ति शीलतेब्बनविचार है । १८५ ४. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग — जीवादि पदार्थों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जानने वाले मति आदि पांच ज्ञान है। अज्ञाननिवृत्ति इनका साक्षात्फल है तथा हित प्राप्ति अतिपरिहार और उपेक्षा व्यवहित फल हैं। इस ज्ञान को भावना में सदा तत्पर रहता अभीक्ष्णज्ञानोपयोग है । 1 १८६ ५. संवेग - शरीर मानस आदि अनेक प्रकार के प्रियवियोग, अप्रियसंयोग, इष्टका अलाम आदि रूप सांसारिक दुःखों से नित्यभीरता संवेग है | १८ ६. त्याग पर को प्रीति के लिए अपनो वस्तु देना त्याग है । १२८ ७. तप - अपनी शक्ति को नहीं छिपाकर मार्गाविरोधी कायक्लेश आदि करना तप है । १८२ ८. साधुसमाधि - जैसे भण्डार में आग लगने पर वह प्रयत्नपूर्वक शाम्त १७७. पद्म० ३२।१५४ १४ ९४-९५ १७९. वही ३२।१५६ १७८. पच० ३२ । १५५ १ १८०. वही, १४४५२ १८१, वही, ३२ १५६ । १८२. वही, २१९२ १८२. तत्त्वार्थवार्तिक ६।२४ की व्याख्या वार्तिकनं० १ । १८४. वही, बार्तिक २ । १८६. वही वातिक ४ ३ १८८. हो, वार्तिक, ६ । १८५. वही, यातिक ३ । १८७. वही, वार्तिक, ५ । १८९. वही वार्तिक, ७ "

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