Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२५० : पंपचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
पानी पिया और सांप ने भी । गाय के द्वारा पिया पानी दूध हो जाता है और सांप के द्वारा पिया पानी विष हो जाता है उसी प्रकार एक ही गृहस्थ से उत्तम पात्र ने दान लिया और नीच ने भी। जो दान उत्तम पात्र को प्राप्त होता है उसका फल उत्तम होता है और जो नीच पात्र को प्रास होता है उसका फल नीना होता है।५ कोई पात्र मिथ्यादर्शन से युक्त होने पर भी सम्यग्दर्शन की भावना से युक्त होते हैं ऐसे पात्रों के लिए भाव से जो दान दिया जाता है उसका फल शुभअशुभ अर्यात् मिश्रित प्रकार का होता है। दीन तथा अन्रे आदि मनुष्यों के लिए कशाप्टान कहा गया है और उसग यापि फल की प्राप्ति होती है पर वह फल उत्तम फल नहीं कहा जाता । जो दाम निन्दित बताया है वह भी पात्र के भेद से प्रशंसनीय हो जाता है। जिस प्रकार शक्ति के द्वारा पिया पानी मोती हो जाता है ।१६१ भूमि का दान यद्यपि निन्दित है फिर भी यदि जिनप्रतिमा आदि को उद्देश्य कर दिया जाता है तो वह दीर्घकाल तक स्थिर रहने वाले भोग प्रदान करता है ।१५० एक स्थान पर कहा गया है कि सामर्थ्य के अनुसार भक्तिपूर्वक सम्यग्दृष्टि लोगों के लिए जो दान देता है, जभी का एक दान है बाकी तो चोरों को लुटाना है ।१७१
निन्दनीय दान--जिरा प्रकार कमर जमीन में दीज बोया जाय तो उससे कुछ भी उत्पन्न नहीं होता उसी प्रकार भिध्यादर्शन से माहित पापी पात्र के लिए दान दिया जाय तो उनसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता । १७२ को रागद्वेष आदि दोषों से युक्त है वह पात्र नहीं है और न वह इच्छित फल देता है । ७३ लोम के वशीभूत दुष्ट अभिप्राय से युक्त तथा हाथी, घोड़ा, गाय आदि जीवों का दान भी बतलाया है पर तत्त्व के जानकार लोगों ने उसकी निन्दा की है । उसका कारण यह है कि जीव दान में जो जीव दिया जाता है उसे स्रोमा ढोना पड़ता है । नुकुली, परी आदि से उसके शरीर को आंका जाता है सपा लाठी आदि से उसे पीटा जाता है इन कारणों से उसे महा दुःख होता है और उसके निमित्त से अन्य जीवों को बहुत दुःख उठाना पड़ता है। यहाँ पर भूमिदान की भी निन्दा की गई है क्योंकि उससे भूमि में रहने वाले जीवों को पोड़ा होती है ।
१६६, पम० १४।६४ । १६८. वही, १४।६६ । १७०, वही, १४१७८। १७२. वही, १४॥६१ । १७४. वही, १४/७३ । १७६. वही, १४।७५ ।
१६७. प १४०६५ । १६९. वही, १४॥७७ । १७१. वहीं, १४.९५ । १७३. वहीं, १४॥६३ । १७५. वही, १४१७४ ।