Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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धर्म और दर्शन : २४५
पुत्सर्ग ( बाय और आन्तरिक परिग्रह का त्याग ), और ध्यान से छह आम्एस्तर तप है । यह समस्त तप धर्म कहलाता है।
अनुप्रेक्षा शरीरादि अनित्य है, कोई किसी का शरण नहीं है, शरीर अपवित्र है, शरीर रूपी पिंजड़े से आत्मा पथक् है, यह अकेला ही सुख दुःख भोगता है। संसार के स्वरूप का चिन्तन करना, लोक की विचित्रता का विचार करना, आत्रयों (कर्मों का आना) के गुणों का ध्यान करना, संवर (मानव का मिरोष) की महिमा का चिंतन, पूर्वबद्ध कर्मों को निज रा का उपाय सोचना, बोधि अर्थात् सम्पनदर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्म चारित्र को दुर्लभता का विचार करना और धर्म का माहात्म्य सोचना ये बारह अनुप्रेक्षाय (भावनायें) हैं । ११८ इन्हें हृदय में धारण करना चाहिए।
मोक्ष प्राप्ति का उपाय सम्यग्दर्शन, सभ्यग्ज्ञान और सम्य-वारित्र इनकी एकता को मोक्षमार्ग (मोक्ष प्राप्ति का उपाय) कहते है १११
सम्यग्दर्शन-तत्त्व का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है ।१२° एक अन्य स्थान पर कहा गया है जो पदार्थ जिस प्रसा: “यत है । सोर श्रदान करना परमसुख है और मिथ्या कल्पित पदार्थो का ग्रहण करना अत्यधिक दुःख है । इसका तात्पर्य यह है कि रविषेण सम्यग्दर्शन और सुख में अपेक्षया कोई भेद नहीं मानते थे ।
सम्यग्ज्ञान-जो वस्तु के स्वरूप को न्यूनता रहित, अधिकता रहित और विपरीतता रहित जैसा का ससा सन्देहरहित जानता है उस ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं । १२१
सम्यकचारित्र-सर्वज्ञ के शासन में कही हुई विधि के अनुसार सम्यमान पूर्वक जितेन्द्रिय मनुष्य के द्वारा जो आचरण किया जाता है उसे सम्यक्चारित्र कहते हैं । १२ जिसमें इन्द्रियों का वशीकरण और वचन तथा मन का नियंत्रण ११७. पम १४।११६, ११७ । ११८. पद्म० १४॥२३७, २३९ । ११९, अहो, १०५।२१० ।
१२०. वही, १०५२११ । १२१. वहीं, ४३।३०। १२२. 'अन्यूनमनतिरिक्त याथातथ्यं विना च विपरीतात् । __ निःसन्देहं वेद पदाहस्तज्ज्ञानमागमिन' ||
-रमकरश्रावकाचार, ४२ । १२२२, पद्म १०५।२१५ ।