Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 243
________________ राजनैतिक जीवन : २३९ मयंकर योद्धा अपनी निकलती हुई भक्तों को बायें हाथ से पकड़कर तथा दाहिने १७ जो मोठ हाथ से तलवार उठा बड़े वेग से शत्रु के सामने जा रहा था । चाब रहा था तथा जिसके नेत्रों की पूर्ण पुत्तलियां दिख रही थीं ऐसा कोई योद्धा अपनी आँतों से कमर को मजबूत कसकर शत्रु की ओर जा रहा था । ३७७ सैनिकों का विश्राम - किसी कारण जब युद्ध यन्द हो जाता था सब किङ्कर शिररहित घड़ आदि को हटाकर उस युद्धभूमि को शुद्ध करते थे और वहाँ कपड़े के ऊंचे-ऊंचे हेरे, कमातें तथा मण्डप आदि खड़े कर दिए जाते ये : उस भूमि को चौकियों से सुख दिया जाता थाओं में आवागमन बन्द कर दिया जाता था और कवच तथा धनुष को धारण करने वाले योद्धा बाहर खड़े रहकर उनकी रक्षा करते थे । १७९ लक्ष्मण को शक्ति लगने पर जब युद्ध विराम हो गया तब इसी प्रकार की व्यवस्था के बाद पहले गोपुर पर धनुष हाथ में लेकर नील बँठा, दूसरे गोपुर में गदा हाथ में धारण करने वाला मेघतुल्म नल लड़ा हुआ, तीसरे गोपुर में हाथ में शूल धारण करने वाला उदारता विभीषण खड़ा हुआ । यहाँ जिसकी मालाओं में लगे नाना प्रकार के रत्नों की किरणें सब ओर फैल रही थीं ऐसा विभीषण ऐशानेन्द्र के समान सुशोभित हो रहा था । १८० कवच और तरकस को धारण करने वाला कुमुद चौथे गोपुर पर खड़ा हुआ पांच गोपुर में माला हाथ में लिए प्रतापी सुषेण खड़ा हुआ जिसकी भुजायें अत्यन्त स्थूल थीं और भिण्डिमाल नामक शस्त्र से इन्द्र के समान जान पढ़ता था ऐसा वीर सुद्धोद स्वयं छठे गोपुर में सुशोभित हो रहा था तथा सातवें गोपुर में बड़े-बड़े नत्र राजाओं की सेना को मौत के घाट उतारने वाला भा मण्डल स्वयं तलवार खींचकर खड़ा था । १८२ पूर्व द्वार के मार्ग में शरभ विह्न से चिह्नित ध्वजा को धारण करने वाला शरभ पहरा दे रहा था। पश्चिम द्वार में जाम्बव कुमार सुशोभित हो रहा था । मन्त्रि समूह से युक्त उत्तर द्वार को घेरकर चन्द्ररश्मि नाम का बालि का महाबलवान् पुत्र खड़ा हुआ था । १८ युद्ध ३७६. कश्चित्करेण संरुध्य वामेनान्त्राणि सद्भटः । तरसा खङ्गमुद्यम्य ययौ प्रत्यरि भीषणः । पद्मः १२।२८५ । ३७७. कश्चिन्निजैः पुरीतद्भिदृष्या परिकरं दृकम् । दष्टौष्ठोऽभिययी शत्रु ३७८. पम० ६३३२८ । ३८०, वही, ६३३३०-३१ । ३८२. वही, ६३३३-३४ । हृष्टाशेषकनीनिकः ॥ पद्म० १२२८६ । ३७९. पद्म० ६३।२९ । ३८१. वही, ६३३२ । ३८३. वही, ६३।३५-३६ ।

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