Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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धर्म और दर्शन : २३५
पांच अणुव्रत १. स्थूल हिंसा का त्याग करना-धर्म का मूल दवा है और दया का मूल अहिंसा रूप भाव है ।२० संसार में समस्त वस्तुओं से प्यारा जीवन है, उसी के सब शाप है ।२१ मा को ऐसा जानकर कि जिस प्रकार मुझे अपना शरीर इष्ट है उसी प्रकार समस्त प्राणियों को भी अपना शरीर इष्ट होता है, सब प्राणियों पर दया करनी चाहिए । २२ जो मनुष्य मांस भक्षण से दूर रहता है, भले ही वह उपवासादि से रहित तथा दरित हो तो भी उत्सम गति उसके हाथ रहती है । इस प्रकार अहिंसा धर्म का प्रतिपावन और मांसभक्षण का निषेध पधचरित में बहुत विस्तार से किया गया है ।२४ _स्थूल झूठ का त्याग'--'जो वचन दूसरों को पौड़ा पहुंचाने में निमित्त है वह असल्म' कहा गया है क्योंकि सत्य इससे विपरीत होता है । २५ सत्यवसधारी के वचन सब ग्रहण करते हैं तथा उज्ज्वल कीति से वह समस्त ससार को ग्याप्त करता है।२७
स्थल परद्रव्यापहरण का त्यागर-की गई चोरी इस जन्म में वष, पन्धन आदि कराती है और मरने के बाद कुयोनियों में नाना प्रकार के दुःख देती है। इसलिए बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिए कि चोरी का सर्व प्रकार से स्याग करें। जो कार्य तीनों लोकों में विरोध का कारण है वह किया ही कैसे जा
सकता है । २९
परस्त्री का त्याग-पाहे विधवा हो चाहे सघघा, चाहे कुलवती हो चाहे रूप से युक्त वेश्या हो, परस्त्रीमात्र का प्रयत्नपूर्वक त्याग कर देना चाहिए । परस्त्री संसर्ग इस लोक तथा परलोक दोनों जगहों में विस्त है। लोगों को, जिस प्रकार अपनी स्त्री को कोई दूसरा मनुष्प छेहता है तो इससे अपने आपको
२०. पन ६।२८६ ।
२१. पद्म० ३८।६९ । २२. वही, १४१८६ ।
२३. वही, २६१९८॥ २४. वही, ३५।१६३, १६४, २६६६५, २६.६४, २६१६६, ६९, ७४, ७१,
१००-१०२, १०६, १०८, ३९१२२६, ५९।३०, ५३२६.३२८, ५।३४१३४२, ६।२८६-२८९, ११।७४, २७०, २७१, ११॥२७२-२७३, ८५२४
२५, ३२।१४९ । २५. वहीं, १४।१८४ ।
२६. वही, १४११८८ । २७. वहीं, ३२११५० ।
२८. वही, १४११०४। २२, वही, १४।१८९-१९० । ३०. वही, १२४-१२६ ।