Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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राजनैतिक जीवन : २२९ वक्षःस्थल में घाव आभूषण के समान सुशोभित हैं, जिनका कवच टूट गया है, प्राप्त हुई विजय से योवागण जिनको स्तुति कर रहे है, जो अतिशय धीर है तथा गम्भीरता के कारण जो अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं कर रहे हैं ऐसे आपको युद्ध से लौटा हुआ देखेंगी तो स्वर्णमय कमलों से जिनेन्द्रदेव की पूजा करूंगी । ३१ महायोडाथों का सम्मुखागत मृत्यु को प्राप्त हो जाना अभ्ठा है किन्तु पराङ्मुख हो धिक्कार, शब्द से मलिन जीवन बिताना अच्छा नहीं है ।३६४ कोई बोला-- हे प्रिये ! वे मनुष्य प्रशंसनीय हैं जो रणाग्रभाग में जाकर शत्रुओं के सम्मुख प्राण छोड़ते हैं तथा सुयश प्राप्त करते हैं । २५ किसी योद्धा ने नया मजबूत कवच पहिना था परन्तु हर्षित होने के कारण उसका शरीर इतना बढ़ गया कि फवध फटकर पुराने कवच के समान जान पड़ने लगा ।।
जब शत्रुघ्न ने मधु' पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान किया तब मन्त्रिसमूह ने इस बात की चर्चा की कि जो विद्याघरों के द्वारा दुःसाध्य था ऐसा महाशक्तिशाली मान्धाता जिसके द्वारा पहले युद्ध में जीता गया था वह मधु इस बालक के द्वारा कैसे जीता जा सकेगा।" कृताम्सवक्त्र सेनापति ने कहा कि जिसके मद को चारा घर रही हो ऐसा बलवान् हाथी यद्यपि अपनी सूंड से वृक्ष
३६३. वीरपत्नी प्रियं काचिदालिंग्यैबमभाषत ।
श्रुतानेकमहायोधपरमाहव विम्रमा ॥ पन्नः ५७३३ सङ्ग्रामे बिक्षतः पृष्ठे यदि नाथागमिष्यसि । दुर्यशस्तदहं प्राणान् मोक्ष्याभि श्रुतिमारतः ।। पय० ५७।४ । किङ्कराणामतः पत्न्यो वीराणामतिविताः । पिशब्दं मे प्रदास्यन्ति किन कष्टमतः परम् ॥ पद्म० ५७५ । रणप्रत्यागत धीरमरोवणविभूषणम् । विशीर्णकवचं प्राप्तजयं लब्धभटस्तवम् ॥ पम० ५७६ । द्रक्ष्यामि यदि धन्याहं भवातमविकत्यनम् ।
जिनेन्द्रानर्थयिष्यामि ततो जाम्बूनदाम्बुजैः ।। पच० ५७१७ । ३६४. आभिमुख्यगत मृत्यु पर प्राप्ता महाभटाः ।
पराङ्मुखाः न जीमन्तो घिकशब्दमलिनीकृताः ।। पद्म० ५७।८ । ३६५. नरास्ते दयिते श्याध्या ये गता रणमस्तकम् ।
त्यजन्त्यभिमुखा जीवं शत्रूणां लब्यकीर्तयः ।। पम० ५७१२१ । ३६६. पिन कस्यचिद्धर्म सुदुलं तोषहारिणः ।
वर्धा मानं ततः शीणं पुराणं फकटायितम् ।। पद्य० ५७३८ । ३६७. पद्म० ८९।४१ ।