Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२२८ : पारित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
आलाद का कारण गोशीर्ष चन्दन दिया जाता है।५८ पंखे आदि से हवा की जाती है। बर्फ के जल के छीटें दिये जाते हैं तथा इनके सिवाय जो कार्य आबश्यक हों उनकी पूर्ति समीप में रहने वाले मनुष्य सत्परता के साथ करते है । ५९ युद्ध की यह विधि (नियम) जिस प्रकार अपने पक्ष के लोगों के लिए है उसी प्रकार दूसरे पक्ष के लिए भी है। युद्ध में निज और पर का भेद नहीं होता । ऐसा करने से ही कर्तव्य की सिद्धि होती है ।२१० जो राजा अतिशय बलिष्ठ शूरवीरों की चेष्टा को धारण करने वाले है वे न भयभीत पर, न ब्राह्मण पर, न मुनि पर, न निहत्थे पर, न स्त्री पर, न बालक पर, न पशु पर और न दूत पर प्रहार करते है ।३१ भयभीत शरणागत तथा शस्त्र डाल देने वाले पर भी प्रहार नहीं किया जा ३१२
सैनिक उत्साह-युद्ध के लिए जाते समय सैनिकों में अटूट उत्साह भर दिया जाता था ! इसके मूल में स्त्रियाँ, सेनापति, राजा, तरह-तरह के वाजे आदि अनेक होते थे। पद्मचरित का ७वा पर्व सैनिक उत्साह के वर्णन से भरा पड़ा है । यहाँ कुछ उदाहरण दिये जाते है
"जिसने महायुद्ध में अनेक बड़े-बड़े योद्धाओं का वर्णन सुन रखा था ऐसी किसी वीर परनी में पत्ति का आलिङ्गन कर इस प्रकार कहा-'हे नाथ ! यदि संग्राम में घायल होकर पीछे आओगे तो बड़ा अपयश होगा और उसके सुनने मात्र से ही मैं प्राण छोड़ दूंगी। क्योंकि ऐसा होने पर धीर किङ्करों की गीली परिनयाँ मुझे धिक्कार देंगी। इससे बढ़कर कष्ट की पास और क्या होगी जिनके - - - - - - - - --- ३५८. अमृतोपममन्नं च अधागलपनमीयुषोः ।
गोशीर्षचन्दनं स्वेदसंगिनो हादिकारणम् ।। पप ७५।२ । ३५९. तालवृन्तादिवातश्च हिमवारिफगो रणे ।
क्रियते तत्परैः कार्य मान्यदपि पार्श्वगः ॥ पद्म ७५३। ३६०. तथास्तयाऽन्येषामपि स्वपरवर्गतः ।
इति कर्तधाता सिक्षिः सकला प्रतिपयते ॥ पप० ७५३४ । ३६१, नरेश्वराः अजितशोर्यचेष्टा न भीतिभाजा प्रहरन्ति बातु । न ब्राह्मणं न श्रम न शुभ्यं स्त्रियं न बालं न पशु न दूतम् ।।
पप०६६१९.। यहाँ पर ब्राह्मणों के लिए विशेष संरक्षण से यह व्यनित होता है कि उस समय लोक में ब्राह्मणों की अधिक प्रतिष्ठा थी। ३६२. पम: ५७।२४ ।