Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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राजनैतिक जीवन : २१९
मतिकाम्त नामक मंत्री ने कहा कि संभवतः रावण ने छल से इसे भेजा है, क्योंकि राजाओं की चेष्टा बड़ी विचित्र होती है ।२४७ परस्पर के विरोध से कलुषता को प्राप्त हुआ कुल जल को तरह फिर से स्वच्छता को प्राप्त हो जाता है ।२४४ इसके बाद मसिसागर नामक मन्त्री ने कहा कि लोगों के मह से सूना है कि इन दोनों भाइयों में विरोध हो गया है। सुना जाता है कि विभीषण धर्म का पक्ष ग्रहण करने वाला है, महानोतिमान है, शास्वरूपी जल से उसका अभिप्राय धुला हुआ है और निरन्तर उपकार करने में तत्पर रहता है। इसमें भाईपना कारण नहीं है, किन्तु कर्म के प्रभाव से ही संसार में यह विचित्रता है, इसलिए दूत भेजने वाले बुद्धिमान विभीषण को बुलाया जाय । इसके विषय में योनि सम्बन्धी दृष्टान्त स्पष्ट नहीं होता अर्थात् एक योनि से उत्पन्न होने के कारण जिस प्रकार
दुष्ट है, उसी प्रक: दिनमो जुट होना चाहिए, यह बात नहीं है।२१९ मतिसागर मन्त्री का कहना मानकर राम ने विभीषण को, जबकि बह निश्छलता को शपथ खा चुका था तब यथेष्ट आश्वासन देकर अपनी ओर मिलाया । २५० एक स्थान पर कहा गया है फि दुष्ट मित्रों के लिए मन्त्रदोष, असत्कार. दान, पुण्य, अपनी शूरवीरता, दुष्ट स्वभाव और मन की दाह नहीं बतलानी चाहिये । २५१
राजा का निर्वाचन-राजा के निर्वाचन का आधार प्रमुख रूप से पित पितामह या वंशानुक्रम था। फिर भी राजा को म्याम व धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करना होता या । राजा बब धर्म से ग्युत हो जाता था तो जनता उसे रामसिंहासन से हटाकर बाहर निकाल देती थी। नरमांसभक्षो राजा सौदास को जनता ने सिंहासन से उतारकर नगर से बाहर निकाल दिया था । २५२
राज्याभिषेक-राजसिंहासन पर अधिष्ठित होने से पहले राजाओं का राज्याभिषेक होता था। इस अवसर पर अनेक राजा उपस्थित रहते थे। २५६ झभिषेक के समय शंख, पुन्दुभि, उनका, सालर, सूर्य तपा बांसुरी बादि बाजे बजाये जाते थे । २५४ तत्पश्चात होने वाले राजा को अभिषेक के आसन पर आरू कर चाँदी, स्वर्ण तथा नाना प्रकार के कलशों से अभिषेक किया जाता
२४७. पा. ५५५२ 1
२४८. पम० ५५०५३। २४९. वही, ५५।५४-७०
२५०. वही, ५५१७३ । २५१. मन्त्रदोषमसत्कारं दानं पुण्यं स्वशूरताम् ।
दुःशीलवं मनोदाहं दुमित्रेम्यो न वेदयेत् ।। पा० ४७।१५ । २५२. पद्म० २२।१४४ ।
२५३. पम ८८०२०, २५ । २५४. वही, ८८।२६-२७ ।