Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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राजा जयड : १
करना, आत्मीय जनों को प्रेम दिखाकर अनुकूल रखना, शत्रु को उत्तम शील अर्थात् निर्दोप आपग्ण से वश में करना, मित्र को सद्भावपूर्वक की गई सेवाओं से अनुकूल रखना,१६५ क्षमा से क्रोध को, मार्दव से मान को, बाउंव से माया को और धैर्य से लोभ को वश करना," राजा का धर्म माना जाता था ।
गुप्तचर तथा दुतव्यवस्था--प्रसिद्ध उक्ति है कि 'चारैः पश्यन्ति राजानः' राजा लोग चारों (गुप्तचरों) द्वारा देखते है। इस उक्ति से गुप्तचरों की महत्ता स्पष्ट होती है । पद्मचरित में भी इन्हें चार२६ कहा गया है। राजा माली के विषय में कथन है कि उसे वेश्या, बाहन, विमान, कन्या, वस्त्र तथा आभूषण आदि जो श्रेष्ठ वस्तु गुप्तचरों से मालूम होती थी, उस सबको धीरवीर माली बलात् अपने यहाँ बुलवा लेता था, क्योंकि वह विद्या, बल, विभूति आदि से अपने आपको थ' मानता था ।९५६ राजा मय' ने गुप्तचरों द्वारा दशानन में महल का पता लगाया था । २५९ गुप्तचर के साथ-साथ ब्रूतम्यवस्था भी उस समय पुरी-पूरी विकसित हो गई थी। माघ मे शिशुपालवध में चार को आँख और दूल को राजा का मुख बतलाया है !२७० द्रुत को शास्त्रज्ञान में निपुण राजकर्तव्य में कुशल, लोकव्यवहार का ज्ञाता, गुणों में स्नेह करने वाला,२७१ संकेत के अनुसार अभिप्राय को जानने वाला२७२ तथा स्वामी के कार्य में अनरस्त बुद्धि होना चाहिए ।२७१ महाभारत में निरभिमानता, अक्लीयता, निरालस्य, माषुर्य, दूसरे के बहकावे में न आना, स्वस्थता और बातचीत करने का सुन्दर तुंग पे आठ दूत के गुण कहे गये है।
दूत का का कार्य बड़ा साहसपूर्ण था। स्वामी के अभिप्राय के अनुसार उसे शत्रुपक्ष के सामने निवेदन करना पड़ता था। इतना होते हुए भी दूत मवष्य था ।२७५ रावण के पुष्ट अभिप्राय को व्यक्त करने वाले दूत पर ज्यों ही मामाल ने तलवार उठाई त्यों ही नीतिवान् लक्ष्मण ने उसे रोक लिया ।२७॥ यहाँ पर लक्ष्मण कहते हैं कि प्रतिध्वनियों पर, लकड़ी आदि के बने पुरुषाफार पुतलों
२६५. पद्म० ९७४१२८ ।
२६६, पद्म० ९७११२९ । २६७. वही, ८।२२ ।
२६८. वही, ३५, ३६ । २६९. वही, ८।२२। २७०, 'चारेक्षणो दूतमुखः पुरुषः कोऽपि पार्थिवः । शिशुपालवध, २८२ २७१. पदम० ३९।८५ ।
२७२. पद्म० ६६।१३ । २७३, वही, ३९।८७ ।
२७४. महाभारत ५।३७४२७ । २७५. पद्म ६६१९०।
२७६, पद्म ६६।४।