Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२१२ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
सेना समकार्म को चलाने के लिए दाव्यवस्था की आवश्यकता होती है। दण्डनोसि मप्राप्त वस्तु को प्राप्त करा देती है, जो प्राप्त हो चुका है उसकी रक्षा करती है, यह रक्षित वस्तु को बढ़ाती है और बढ़ी हुई वस्तु का उपयुक्त पार में उपयोग करती है। लोकगाथा सामाजिक व्यवहार) इम देपानीति पर मिर्भर है। अतएव जो राजा लोकयात्रा का निर्माण करने में तत्पर हो उसे पाहिए कि सदा दण्डनीति का उपयोग करने को उद्यत रहे ।१" दण्ड का भलीभौति प्रयोग करने के लिए सेना की आवश्यकता होती है। पपचरित में इसे बल कहा गया है। इस प्रकार के चतुरंग बल का यहाँ उल्लेख हुमा है ।१४ चतुरंग बल के अन्तर्गत निम्नलिखित सेनाएँ आती है
१. हस्तिसेना । २. अश्वसेना । ३. रथ सेना। ४. पदातिसेना। गणना की दृष्टि से इसके आठ भेद ५९ किये गये हैं
१. पति, २. सेना, ३. सेनामुख, ४. गुल्म, ५. वाहिनी, ६. पृतना, ७. चमू तथा ८, अनीकिनी।
पत्ति-जिसमें एक रथ, एक हाथी, पांच प्यादे और तीन घोड़े होते है यह पत्ति कहलाती है ।१२०
सेना–तीन पत्ति को एक सेना होती है । १२१ सेनामुख-तीन सेनाओं का एक सेनामुख होता है । १२२ गुल्म-तीन सेनामुखों का एक मुल्म होता है ।" वाहिनी-सीन गुल्मों की एक वाहिनी होती है ।२४ पृतना--तीन वाहिनियों की एक पृतना होती है । १२५
स्यात् ॥
११७. अलब्घलाभार्था लब्धपरिरक्षिणी रक्षितविधिनी वयस्य तीर्येषु प्रतिपादनी च । तस्यामायत्ता लोकयात्रा । तस्माल्लोकयावार्थी नित्यमुद्यतमः
___कौटिलीयं अर्थशास्त्रम्, १।४। ११८. पद्म० २७४४७ ।
११९. पन० ५६६ । १२०. वही, ५६।६।
१२१. बहो, ५६७। १२२, बही, ५६७1
१२३. वही, ५६७। १२४, बही, ५६३८ ।
१२५. वहीं, ५६८ ।