Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२१० : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
मम्ब वस्तुतः व्यापारप्रधान बड़े नगर को कहा गया है। इसमें एक बड़े नगर की सभी विशेषतायें वर्तमान रहती हैं ।
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पुटभेवन
बड़े-बड़े कापारिक को पुटभेदन कहा आता या बड़े नगरों में थोक माल की गाठें आती थीं जो मुहरबन्द हुआ करती थीं। मुहर को तोड़कर गाँठ खोल दी जाती थीं और उसके उपरान्त उसमें भरा हुआ माल फुटकरियों के हाथ बेच दिया जाता था। मुहरों के इस प्रकार तोड़े जाने के कारण ही विशिष्ट व्यापारिक केन्द्र पुटभेदन कहलाने लगे । १००
घोष '
१९
- १०१
अहीरों (ग्वालों) के छोटे से प्राम को घोष कहते थे ।
द्रोणमुख १०२
मानसार में द्रोणमुख को द्रोणान्तर कहा गया है। इस ग्रन्थ के अनुसार यह नगर समुद्र तट के पास नदी के मुहाने पर स्थित होता है (समुझतदिनी युक्तम् ) इसमें वणिक तथा नाना जातियों के लोग रहते हैं (वणिग्भिः सह नानामितयुक्तं जनास्पदम् ) तथा वस्तुओं का क्रय-विक्रय अत्यधिक होता था ।' १०१ कोटिल्य earer में इसकी स्थिति चार सौ ग्रामों के मध्य कही गई है । १०४ खेद १०५
१०१. पद्म० ४१।५७ ।
१०२. व्ही ४१ ५७
१०४. 'चतुःशत साम्या द्रोणमुखम्
पाणिनि ने खेट को गहित नगर कहा है 19०६ इससे खेट बहुत साधारण प्रकार का सन्निवेश था तथा इसमें थे । मानसार के अनुसार इसमें बहुधा शूद्र ही रहते थे
।
९८. आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ७७ ।
९९. पद्म० ४१५७ ।
१००. गोपीनाथ कविराज अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ४५१ ।
विदित होता है कि
सभ्य लोग नहीं रहते आधुनिक खेड़ा
१०७
१०३. मानसार अध्याय १० ।
फौटिलीयम् अर्थशास्त्रम् अधिकरण २ अध्याय १ ।
१०५. पद्म० ३२।२५ ।
१०६. ‘खेल-खेट-कडुक-काण्डं गयाम् ६१२।१२६ ।
१०७. 'शूत्रालय समन्वितं खेटमुक्तं पुरातनैः ॥ मानसार अध्याय १० ।