Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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राजनैतिक ओषम : २०९
जो बाहरी देशों से (मी होता है।
कय-
लय
सामग्री से परिपूर्ण
प्राम
ग्राम को नगर का ही एक छोटा रूप कह सकते हैं । ये ग्राम ही व्यापारिकों के कारण जब बहुत अधिक विकसित हो जाते थे तो इन्हें नगर कहा जाता था। पमचरित में लम्बी-चौड़ी वापिकाओं तथा धान के हरे-भरे खेतों से घिर ग्रामों का उल्लेख हुआ है ।१५ पद्मचरित के उत्तरवर्ती ग्रन्थ आदिपुराण में बतलाया गया है कि जिनमें बाड़ से घिरे गृह हों, किसानों और शूद्रों का निवास हो, बहुलता से वाटिका तथा तालाबों से युक्त हों वे प्राम कहलाते हैं। जिस ग्राम में सौ घर हों अर्थात् सौ कुटुम्ब निवास करते हों वह छोटा प्राम और जिसमें पांच सौ घर हों वह बड़ा ग्राम कहलाता है ।१२ पद्मचरित में ग्रामों को समृद्धि का विवेचन हुआ है । भरत पक्रवर्दी के राज्य में ग्राम विद्याघरों के नगरों के समान सुखों से सम्पन्न थे।५३
संवाह संवाह उस समृद्ध ग्राम को कहते हैं, जो नगर के सुस्प हो । बृहत्कथाकोष में इसे अदिल्टम् (पर्वत पर बसा हुया प्राम) कहा है ।१५
मटम्बर मटम्ब को महम्ब भी कहते हैं। आदिपुराण में उस बड़े नगर को मडम्ब कहा गया है जो पांच सौ ग्रामों के मध्य व्यापार आदि का केन्द्र हो । ५०
८९. मानसार अध्याय १०
९०. प. ४१५७ । ९१. पम० ३३।५६ । ९२. ग्रामा वृतिपरिक्षोपमात्राः स्युरुचिताश्रयाः ।
शूब कर्षकभूयिष्ठाः सारामाः सजलाशयाः ।। आदिपुराण १६१६४ । ग्रामाः कुलशतभेष्टो निकृष्टः समधिष्ठितः।
परस्तस्पञ्चशल्या स्यात् सुसमृद्धकृषीबल: ।। मादिपुराण १६११५ । ९३. पप. ४१७१।
१४. पम० ४१।५७ । १५. बृहत्कथाकोष ९४।१६ ( नेमिचन्द्र शास्त्री : आदिपुराण में प्रतिपादित
भारत, पृ० ७१)। ९६. पप. ४१५७।
९७. आदिपुराण १६१७२ ।