Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
राजनैतिक जीवन : २०७
मगर भारतीय नगर एक ऐसा विशाल जनसमूह था जिसकी जीविका के प्रधान साधन उद्योग तथा व्यापार थे । पाणिनि ने ग्राम एवं नगर को विभिन्न अनसन्निवेश माना है (प्रायां ग्रामनगराणां)। मानसार में नगर यस्सों के क्रयविक्रय करते नालों से परिपूर्ण जैनः परि कनिकायलिभिः), विभिन्न जातियों का निवासस्थान (अनेकजाति संयूक्तम्) तथा कारीगरों का केन्द्र (कर्मकारैः समन्वितम्) कहा गया है।" पद्मचरित में नगरों की समृद्धि के बहुत से उल्लेख आये है। भरत के राज्य में नगर देवलोक के समान उत्कृष्ट सम्पदाओं से युक्त थे । ९ विजयाई पर्वत की दक्षिण घेणी की नगरियों का वर्णन करते हुए रविषेण कहते है-वहाँ की प्रत्येक नगरी एक से एक बढ़कर है, नाना देशों और ग्रामों से व्याप्त है, मटम्बों से संकीर्ण है तथा खेट और कट के विस्तार से युक्त है। वहां की भूमि भोगभूमि के समान है। वहां के मरने सदा मधु, दूध, घी धादि रसों को बहाते हैं 1७१ यहाँ पर्वतों के समान अनाज की राशियाँ हैं, वहाँ की खतियों (अनाज रखने को खोड़ियों) का कभी क्षय नहीं होता । वापिकाओं और बगीचों से घिरे हुए वहाँ के महल बहुत भारी कान्ति को धारण करने वाले हैं।७२ वहाँ के मार्ग धूलि और कण्टक से रहित सुख उपजाने वाले है। बड़े-बड़े वृक्षों के छाया से युक्त, सर्व प्रकार के रसासहित वहाँ प्याक है।
नगर के चारों ओर विशाल कोट का निर्माण किया जाता था। कोट के बारों और गहरी परिखा (खाई) खोदी जाती थी। इसकी गहराई को उपमा
६७. अष्टाध्यायी ७, ३, १४ 1 ६८. मानसार अध्याय १ (गोपीनाथ कविराज अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ ४४८)। ६९, पद्म ४०९। ७०. देशग्राम सभाकीर्ण मटम्बाकारसंकुलम् ।
सनेटकर्बटाटोप तत्रकै पुरोत्तमम् ।। पद्म ३१३१५ । ७१. भोगभूमिसमं शश्वद् राजते यत्र भूतलम् ।
मधुक्षीर.घृतादीनि यहन्ते तत्र निराः ।। पद्म० ३।३१८ । ७२. धान्यामा पर्वताकाराः पल्पोषाः क्षयवर्जिताः । __वाप्युधानपरिक्षिप्ताः प्रासादाश्च महाप्रभाः ।। पप- ३१३२४ । ७३. रेणुकण्टकनिर्मुक्ता रथ्यामार्गाः सुखावहाः ।
महातस्कृतच्छायाः प्रपाः सर्वसमान्विताः ।। पन ३।३२५ । ७४, पन० ४३११६९।