Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कला : १९७
पत्रच्छेद के भेद-पत्रच्छेद तीन प्रकार ४८ का होता है। १. बुष्किम, २. छिन्न और ३. अविशन्न ।
बुष्किम-सुई अथवा दन्त आदि के द्वारा जो बनाया जाता है उसे बुष्किम कहते हैं । ८९
छिन्न-जो केची आदि से काटकर बनाया जाता है तथा अन्य अवयवों के सम्बन्ध से युक्त होता है उसे लिन्म कहते हैं । ४५०
अच्छिन्न-जो कैचो आदि से काटकर बनाया जाता है तथा अन्य अवयवों के सम्बन्ध से रहित होता है उसे अच्छिन्न कहते है।५१
- मालानिर्माण की कला मालानिर्माण की कला चार ४५२ प्रकार की होती है-आई, शुष्क, तदुम्मुक्त और मिध ।
आर्द्र-गीले (ताजे) पुष्पादि से जो माला बनाई जाती है उसे आई कहते है ।११
शुष्क-सूखे पत्र आदि से जो माला बनाई जाती है उसे शुष्क कहते
तदुन्मुक (तदुज्झित) चावलों के सीय अथवा जवा आदि से जो माला बनाई जाती है उसे तदुमित कहते हैं ।४१५
मित्र-जो माला उपर्युक्त तीनों के मेल से बनाई जाती है उसे मिश्र कहते
यह माल्यकर्म रणप्रबोधन, व्यूहसंयोग आदि भेदों सहित होता है ।
गन्धयोजना सुगन्चित पदार्थ निर्माण रूप कला को गन्धयोजना कहते हैं । ४९४
गन्धयोजना के अंग-योनिद्रव्य, अधिष्ठान, रस, वीर्य, कल्पना, परिकर्म, गुणदोषविज्ञान तथा कौशल ये गन्धयोजना के अंग ९८ है।
४८८. पद्म० २४।४१ । ४९०, वही, २४१४२ । ४९२. वहो, २४॥४४ । ४९४. वही, २४|४५ । ४९६. वहीं, २४६४५ । ४९८. वही, २४|४७ ।
४८९, पद्म २४|४१ । ४९१. वही, २४|४२ । ४९३. वहीं, २४।४४ । ४९५. वही, २४१४५ । ४९७. बही, २४|४६ ।