Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१९६ : पद्मचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति
जाति-लेखसहित उपर्युक्त भेदों (आर्य, लक्षण और म्लेच्छ) को प्राप्ति
मातृकाएँ–साधारणतः वर्गों को पृथक्-पृथक् अथवा वर्णमाला को समुदित रूप में मातृका कहा जाता है ।४७५ इन मातृकाओं और उपर्युक्त जातियों सहित जो भाषणचातुर्य है उसे उक्तिको शल कहते हैं।४४० ।
पुस्तक मिट्टी, लकड़ी आदि से खिलोना बनाने के कार्य को पुस्तकर्म कहते हैं । क्षय, उपचय और संक्रम के भेय से पुस्तकम तीन प्रकार का होता है ।।८१
क्षयजन्य पुस्तकम-लकड़ी आदि को छोल-छालकर को खिलौने आदि बनाये जाते हैं उसे भयजम्य पुस्तकर्म कहते हैं ।४८२
उपचयजन्य पुस्तकम-ऊपर से मिट्टी आदि लगाकर जो खिलौना आदि बनाये जाते हैं उसे उपचयजन्य पुस्तकर्म कहते है। १८३
संक्रमजन्य पुस्तकर्म-जो प्रतिबिम्ब अर्याल सांधे आदि ढालकर बनाये जाते है उसे संक्रमजन्य पुस्तकर्म कहते हैं ।।६४
पुस्तकर्म के एक अन्य प्रकार से चार भेद ४५ होते हैं-यन्त्र, नियन्त्र, सच्छिद्र तथा निश्छिद्र ।
यन्त्र-2 खिलौने जो यन्त्रचालित होते हैं। नियन्त्र-वे खिलौने जो बिमा यन्त्र के होते हैं। सच्छिद्र-त्रै खिलौन जो छिद्रसहित होते हैं। निश्छिद्र-वे खिलौने जो छिद्ररहित होते है।
पत्रच्छेद-किया पत्तियों को काट-छाँटकर विभिन्न आकृतियाँ बनाने को पत्रम्छेध कहते हैं। ललितविस्तर में कलाओं की सूची में इसको भी स्थान दिया गया है। पत्रच्छेद-क्रिया पत्र, वस्त्र तथा स्वर्णादि के ऊपर की जाती है। यह स्पिर और चंचल के भेद से दो प्रकार की होती है।४८७
४७८. पण २४॥३४॥
४५९. पद्म: २४॥३४। ४८०. वही, २४।३५ ।
४८१. वही, २४॥३८ 1 ४८२. वही, २४।३८ ।
४८३. वहो, २४३९ । ४८४. वहीं, २४॥३९ ।।
४८५. वहीं, २४॥४०॥ ४८६. कॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी : प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद,
पू. १५७] ४८७. प० २४॥४३ ।