Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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अध्याय ५
राजनैतिक जीवन मानव जीवन के आरम्भिक काल से लेकर अभी निकट भूतकाल तक संसार के सभी देशों में राजतन्त्रात्मक शासनव्यवस्था विद्यमान रही है । इस प्रकार की धासनव्यवस्था में साधारणतया तो राजपद वंशानुगत होता था, लेकिम कमो-कभी राजा का निर्वाषन भी किया जाता था । फ्रांसीसी विचारक बोसे के अनुसार राजतन्त्र प्राचीनतम, सबसे अधिक प्रचलित, सर्वोत्तम तथा सबसे अधिक स्वाभाविक शासन का प्रकार है ।' पद्मचरित में हमें राजतन्त्रात्मक शासनप्रणाली के दर्शन होते है। इसका विस्तृत रूप से अध्ययन करने के लिए हमें पधचरित के अनुसार राज्य की उत्पत्ति, राजा और उसका महत्व, राज्य के अंग, सेना भोर युद्ध, न्यायव्यवस्था, गुप्तचर-व्यवस्था और दूस-व्यवस्था आदि विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा ।
राज्य की उत्पत्ति---पाचरित के अध्ययन से राज्य की उत्पत्ति के जिस सिद्धान्त को सर्वाधिक बल मिलता है, यह है सामाजिक समझौता सिद्धान्त । आधुनिक युग में इस सिद्धान्त को सबसे अधिक बल देने वाले, हाम्स, रूसो और लोक है। इनमें भी पधचरित का राज्य की उत्पत्तिसम्बन्धी संकेत आधुनिक युग के रूसो और लोक के सिद्धान्त से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्म दैत्रीय न होकर एक मानवीय संस्था है जिसका निर्माण प्राकृतिक अवस्था में रहनेवाले व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक समझौते के भावार पर किया गया है । इस सिद्धान्त के सभी प्रतिपादक अत्यन्त प्राचीनकाल में एक ऐसी प्राकृतिक अवस्था के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, जिसके अन्तर्गत जीवन को व्यवस्थित रखने के लिए राज्य या राज्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी । सिद्धान्त के विभिन्न प्रतिपादकों में इस प्राकृतिक अवस्था के सम्बन्ध में पर्याप्त मतभेद है। कुछ इसे पूर्व सामाजिक तो कुछ इसे पूर्व राजनैतिक अवस्था मानते हैं। इस प्राकृतिक अवस्था के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी इच्छानुसार प्राकतिक नियमों को आधार मानकर अपना जीवन व्यतीत करते थे। कुछ ने प्राकृतिक अवस्था को अत्यन्त कष्टप्रद और असहनीय माना है तो कुछ ने इस
१. पुखराज जैन : राजनीति विज्ञान के सिद्धान्त, पु० २६१ । २. वही, पृ० १००।