Book Title: Padmcharita me Pratipadit Bharatiya Sanskriti
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१७६ : पप्रचरित और उसमें प्रतिपादित संस्कृति इतना बड़ा था कि वह रथों से, मदोस्मत हाथियों से, वायु के समान वेगशाली घोड़ों से, उपहार के अनेक द्रव्यों से युक्त ऊंटों के समूह से, छत्र, चमर, वाह्न आदि विभूति त्यागकर राजाधिराज महाराज के दर्शन को इच्छा करने वाले मण्डलेश्वर राजाओं से तथा नाना वेशों से आये हुए अन्य अनेक बड़े-बड़े लोगों से सदा क्षोभ को प्राप्त होता रहता था । १०० ___ भवनों को अत्यन्त सफेद (अथवा अन्य वर्णयुक्स) नाना आकारों का धारक तथा रत्न आदि उत्तमोत्तम वस्तुओं से पूर्ण होना चाहिए । ३२८ भवन में पक्का फर्श होना चाहिए ।३०९ पदमचरित में पद्मराग, दधिराग तथा विचित्र-विचित्र मणियों से अड़े फों से युक्त, जिममें मोतियों की मालायें लटकती पीं, जो अनेक वातायनों (झरोखों) से युक्त थे, ऐसे भवनों का वर्णन किया गया है । ३१० भवन में उत्तमोसम फल से मुक्त भगीचे तथा अनेक दोधिकार्य (वापिकायें) होना पाहिए । ५१ राजा के भवन में अनेक गोपुर, कोट, सभा, शालायें, कूट, प्रेक्षागृह तथा कार्यालय आदि होना आवश्यफ था। राम-लक्ष्मण के यहाँ अनेक द्वारों तथा उन्ध गोपुरों से युक्त इन्द्रभवन के समान सुम्पर नन्धावतं भवन षा। किसी महागिरि के शिवरों के समाम नगा नापा का कोटा, वसनो गा को सभा थी। चन्द्रकान्तमणियों से निर्मित सुधीमी नाम को मनोहर शाला यी, अत्यन्त ऊंचा सब दिशाओं का अवलोकन कराने वाला प्रासाव-कुट या, विन्यगिरि के समान कॅचा बद्धमानक नागका प्रेक्षागृह पा, अनेक प्रकार के उपकरणों से युक्त कार्यालय थे, उनका गर्भगृह कुक्कुदी के अण्डे के समान अत्यन्त आश्चर्यकारी था । वह गर्भगृह एक खम्भे पर खड़ा था और कल्पवृक्ष के समान मनोहर था।३१२ ____ भवन की भूमियो घाँदी तथा स्वर्णादि के लेप से सुन्दर बनाना चाहिए । महल ऊँचे होना चाहिए, इनमें अनेक स्तम्भ लगाये जाय, मोतियों आदि मालाओं से सुशोभित हों, इनमें अनेक प्रकार के पुतलों से युक्त विविध प्रकार के मण्डप बनाये जायें । दरवाजे किरणों से चमकते हुए बड़े-बड़े रत्नों से खचित किये जायं । पद्मचरित में हमें अयोध्या के भवनों की रचना इसी प्रकार की देखने को मिलती है । ३९६ भवन का द्वार विशाल आकार का होना
चाहिए ।३९४
३०७. पम० २१८१-८३ । ३०९, वही, ८३३१८ । ३११. वही, ८३३१९1 ३१३. वहीं, ८१।११२, ११३-११५।
३०८. पम० ८३।१७ । ३१०. वही, १४।१२९ । ३१२. वही, ८३१४-८ । ३१४, वाही, ७१३१८ ।